*भोयरी पवारी कविता*
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डोरा भर भर जाय, बेटी सासू धर जाय
मायकिसनीकोमन, आज को सीबील भाहे।।
दादा एक टक देखय, मोती टप टप फेकय
जसी नद्दी कुई कुल,अपना नी देखय।।
भैया मन मन सोचय, बहिन अंगना ह्य छोडय
राखी कोन कलाई, बांधेनी अब जाय।।
काका सोच रहा है,मन ख़े कोस रह्या ह्य
कोन र किलकारी मारहे, सुना बाबुल का गांव।।
मायकिसनीकोमन, आज को सीबील भाहे।।
दादा एक टक देखय, मोती टप टप फेकय
जसी नद्दी कुई कुल,अपना नी देखय।।
भैया मन मन सोचय, बहिन अंगना ह्य छोडय
राखी कोन कलाई, बांधेनी अब जाय।।
काका सोच रहा है,मन ख़े कोस रह्या ह्य
कोन र किलकारी मारहे, सुना बाबुल का गांव।।
रचियता, गोपीनाथ कालभोर रोंढा बैतूल
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*संशोधन आमंत्रित***
आज की नयी पीढ़ी और पढ़ो लिखो लोगो को ये शायद महत्वपूर्ण न लगे पँर हम इन्हें सहेज कर रखने में लगे है आपके सहयोग की आशा है।
*ऐसी कुछ ही वंश / जाति है जिनकी खुद की अपनी बोली, संस्कृति है।*
आओ इसे पवार जनमानस की भाषा बनाये। पवारी भोयरी को बढ़ाये
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