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Thursday, 6 July 2017

हमारे रीति रिवाज़ -
रस्मों में काँसे के बर्तन उपयोग में क्यों लाये जाते हैं ?
हमारे रीति रिवाजों में प्रायः काँसे के बर्तनों का उपयोग ही किया जाता है और दान देने के लिए इन्हें ही प्राथमिकता दी जाती है।विवाह आदि के अवसर पर काँसे के बर्तनों का ही उपयोग किया जाता है। किसी पुरुष परिजन की मृत्यु पर पितर और किसी महिला परिजन की मृत्यु पर पितरीन बनाये जाने का प्रचलन है, जिन्हें भी काँसे के बर्तन ही दानस्वरूप दिए जाते है।
यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल ३ प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं। यही कारण है हमारे रीति रिवाजों में काँसे के बर्तनों का प्रचलन आम है।
"सुखवाड़ा ",सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

अतिशयोक्ति नहीं हकीकत - अपने कर्मों से लिखी अपने जीवन की नई इबारत -

अतिशयोक्ति नहीं हकीकत -
अपने कर्मों से लिखी अपने जीवन की नई इबारत -
आज भी भारतीय महिलाएं अच्छे घर और वर के लिए शिव पार्वती का व्रत रखती हैं और उन्हें ही आदर्श गृहस्थ मानती है। आज यदि किसी ऐसी जोड़ी की कल्पना की जा सकती है तो वह जोड़ी है श्री कृष्णकुमार डोबले और श्रीमती निवेदिता डोबले की जिन्होंने अपने कर्मों से अपने जीवन की नई इबारत लिखी है।
श्री कृष्णकुमार डोबले और श्रीमती निवेदिता डोबले द्वारा वर्ष २००७ में सर्वप्रथम अपने गाँव खैरीपेका में सामूहिक विवाह का आयोजन कर समय के साथ चलने हेतु समाज में परिवर्तन की नई लहर उत्पन्न की थी। उसके बाद २०१२ से श्री कृष्णकुमार डोबले और श्रीमती निवेदिता डोबले के मार्गदर्शन में खैरीपेका में प्रतिवर्ष लगातार सामूहिक विवाह का आयोजन हो रहा है।
कुछ दिनों पूर्व ही श्री कृष्णकुमार डोबले की बड़ी बहन श्रीमती गीता कास्लिकार का उज्जैन में आकस्मिक निधन हुआ था तब भी अपने जीजाश्री को सम्बल देने न केवल दोनों युगल श्री कृष्णकुमार डोबले और श्रीमती निवेदिता डोबले उनके पास उपस्थित रहे अपितु उन्होंने तेरवीं का आयोजन न कर केवल श्रृद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन कर दुःख की घडी में भी साहस दिखाने का परिचय दिया।
अभी हाल ही में श्री कृष्णकुमार डोबले खैरीपेका छिंदवाड़ा ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती निवेदिता डोबले पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत छिंदवाड़ा के सम्बल और सहयोग से अपनी माताश्री के देहावसान पर केवल श्रृद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित कर क्षेत्र में नई मिसाल कायम की है। श्री डोबले जी ने अपनी माताश्री शांति बाई डोबले का दसक्रिया कार्यक्रम उज्जैन में आयोजित किया और वहाँ की तीन विकलांग संस्थाओं के बच्चों को अपनी शृद्धानुसार अनुदान राशि उपलब्ध कराई। खैरीपेका में तेरहवीं के दिन केवल श्रृद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया और तेरहवीं में होने वाले संभावित खर्च की राशि से अपने गांव खैरीपेका के मोक्षधाम में विश्रामगृह बनाने का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसकी मिसाल दूर दूर तक मिलना मुश्किल है।
उल्लेखनीय है उक्त दोनों दंपत्ति द्वारा समाज सुधार पर भाषण देने के स्थान पर समय समय पर समाज सुधार के काम करके जो उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे है वह अनुकरणीय है। भगवान् इन दोनों को दीर्घायु प्रदान कर इनकी जोड़ी को सलामत रखें।
आप चाहे तो इस दंपत्ति को उनके कार्य के लिए बधाई दे सकते है। उनका मोबाइल न है -9584153816
वल्लभ डोंगरे ,"सुखवाड़ा ",सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

प्रेरणा -बंगाल आसाम से सीखें -

बंगाल आसाम से सीखें -
पढ़ने का जज्बा -जुनून व साहित्यकार को सम्मान देना -
पढ़ने का जैसा जज्बा और जुनून बंगाल में पाया जाता है वैसा भारत में विरला ही देखने को मिलता है। वहाँ किताबें मांगकर या चुराकर नहीं अपितु खरीदकर पढ़ने का शौक है।वहाँ पढ़ने ,गुनने व पढ़े से सीखने का प्रयास किया जाता है। वहां छोटे लेखक को सम्मान दिया जाता है.वहां जन्मदिन ,विवाह ,तीज त्योहार या विवाह वर्षगाँठ पर पुस्तकें भेंट करने का रिवाज है। वहाँ शब्द साधक ,साहित्यकार को समाज में जो सम्मान दिया जाता है वह अन्यत्र विरला ही पाया जाता है। किसी साहित्यकार की मृत्यु पर पूरा बंगाल शोक व्यक्त करने उमड़ पड़ता है। साहित्यकार के घर से लेकर श्मशान घाट तक लोग सड़क किनारे अंतिम दर्शन और विदाई देने के लिए कतारबद्ध खड़े रहते है। हिंदी क्षेत्र में ऐसा सम्मान बड़े बड़े साहित्यकार को भी नसीब नहीं हो पाता। प्रेमचंद की शव यात्रा में 6 और अमृता प्रीतम की शवयात्रा में 7 लोग शामिल हुए थे। साहित्यकार के प्रति समाज का सरोकार आसाम से भी सीखा जा सकता है जहाँ माता -पिता किसी कार्यक्रम में पधारे साहित्यकार के बारे में अपने बच्चों को जानकारी देते हुए देखे जा सकते है। हिंदी क्षेत्र में माता पिता को ही साहित्यकार के बारे में जानकारी नहीं होती ऐसे में अपने बच्चों को जानकारी देते हुए उन्हें देखे जाने का प्रश्न ही नहीं उठता।
सबक -हिंदी क्षेत्र में फेसबुक पोस्ट को पढ़ने व उसपर सार्थक प्रतिकिया व्यक्त करने का प्रतिशत भी नगण्य है। -सतपुड़ा संस्कृति संस्थान भोपाल

Friday, 23 June 2017

अनुकरणीय । कृष्णकुमार डोबल goे और श्रीमती निवेदिता डोबले का साहसिक कदम

कृष्णकुमार डोबल goे और श्रीमती निवेदिता डोबले का साहसिक कदम -

समाज सुधार पर भाषण देने के स्थान पर काम करके  प्रस्तुत की मिसाल 

श्री कृष्णकुमार डोबले खैरीपेका छिंदवाड़ा ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती निवेदिता डोबले पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत छिंदवाड़ा के सम्बल और सहयोग से अपनी माताश्री के देहावसान पर केवल श्रृद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित कर क्षेत्र में नई मिसाल कायम की है। श्री डोबले जी ने अपनी माताश्री शांति बाई डोबले का दसक्रिया कार्यक्रम उज्जैन में आयोजित किया और वहाँ की तीन विकलांग संस्थाओं के बच्चों को अपनी शृद्धानुसार अनुदान राशि उपलब्ध कराई। खैरीपेका में तेरहवीं  के दिन केवल श्रृद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया और तेरहवीं में होने वाले संभावित खर्च की राशि से  अपने गांव खैरीपेका के मोक्षधाम में विश्रामगृह बनाने का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसकी मिसाल दूर दूर तक मिलना मुश्किल है। 

 उल्लेखनीय है श्रीमती निवेदिता डोबले और श्री कृष्णकुमार डोबले ने अपने गांव खैरीपेका में छः जोड़ों का  कुछ वर्षों पूर्व सामूहिक विवाह का आयोजन कर क्षेत्र में काफी ख्याति अर्जित की थी। उस समय भी उक्त दंपत्ति द्वारा सामूहिक विवाह का पूरा व्यय स्वयं वहन किया गया था। उक्त दोनों दंपत्ति द्वारा  समाज सुधार पर भाषण देने के स्थान पर समय समय पर समाज सुधार के काम करके जो उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे है वह अनुकरणीय है।