Saturday 8 July 2017

कहानी रफ़ कॉपी की📔

📔
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👥जब हम पढ़ते थे तो हर subject की कॉपी अलग थी।
लेकिन एक ऐसी कॉपी📖 थी जो हर subject को संभालती थी।
उसे हम कहते थे "रफ़ कॉपी"📔

यूँ तो रफ़ कॉपी📔 का मतलब खुरदुरा होता है।
लेकिन ये हमारे लिए बहुत ही मुलायम थी..

क्योकि...
1) उसके कवर पर हमारा कोई पसंदीदा चित्र होता था।😛😛
2) उसके पहले पन्ने पर डिजाइन में लिखा हुआ हमारा नाम।😊😊
3) शानदार राइटिंग में लिखा हुआ पहला पेज।😁😁
4) बीच में लिखते तो हिंदी थे पर लगता था जैसे कई भाषाओं का मिश्रण हो।😜😜
5) अपना लिखा खुद नही समझ पाते थे।😂😂

रफ़ कॉपी📔 में हमारी बहुत सी यादें छुपी होती थी🙇
वो अनकहा प्रेम...💑
वो अंजाना सा गुस्सा ...😲
बेमतलब के दर्द...🙁
कुछ उदासी🙇 छुपी होती थी...

हमारे रफ़ कॉपी📔 में कुछ ऐसे code words लिखते थे✍
जो सिर्फ और सिर्फ हम ही समझ सकते थे😂😂

उसके आखिरी पन्नों पर वो राजा, मंत्री, चोर, सिपाही का स्कोर बोर्ड📋
वो दिल💞छू जाने वाली शायरी।
कुछ ऐसे नाम जिन्हें हम मिटने की सोच🤔 भी नहीं सकते थे।

मतलब हमारे बैग🎒में कुछ हो न हो रफ़ कॉपी जरूर रहती थी।

लेकिन अब वो दिन काफी दूर चले गए😥
रफ़ कॉपी📔 हमसे दूर चली गयी😥

शायद पड़ी होगी घर🏠के किसी कोने में...
मेरी यादों को छुपाये हुए..🙁
सबकी नज़रों👀 से बचाये हुए..😥

न जाने कहाँ होंगे वो दोस्त👥
न जाने कहाँ होंगी वो यादें🙁

🤔सोचता हूँ...
जब चार दिन बचेंगे ज़िन्दगी के😓
तब खोलूंगा वो रफ़ कॉपी📔
"देखूंगा चश्मे👓 में छिपे आँखों  से😰"
"पलटूंगा कपकपाती हाथों से😓"
"पढूंगा थरथराती होठों से🙁

क्योंकि अभी तो...
"जो 👀नज़रों-नज़रों👀 से होती थी, वो अल्फ़ाज़ अधूरी है"
"जो दोस्तों 👬 के साथ बिताए, वो याद अधूरी है"
"👲बचपन में जैसे जीता था, वो अंदाज अधूरी है"
"अभी उस रफ़ कॉपी 📔में कई code words, कई सवाल हैं यारों..
जिनकी अभी हिसाब 📝 अधूरी है।"🙇
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अगर आपको भी याद है वो बचपन तो शेयर जरूर करें📲...

Thursday 6 July 2017

Surnames In Pawar Community Bhoyar Pawar बैतूल छिंदवाड़ा वर्धा पवार गोत्र





Surnames In Pawar (bhoyar) Community 72 gotra

उपरोक्त जानकारी बैतूल छिंदवाड़ा वर्धा पवार (भोयर पवार ) के बारे में दी गयी है 


क्षत्रिय पवार , जिसे पंवार, पवार या भोयर-पवार भी कहा जाता है, एक राजपुत वंश की शाखा है। हिंदू और वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार, वे क्षत्रिय वर्ण से हैं [1] [2]। भोयर-पवार मालवा के पंवार राजपूतों के वंशज होने का दावा करते हैं [3] [4]

१५वी से १७वी शताब्दी के बीच, पंवारो की ७२ कुल शाखा का प्रदेशांतर मालवा से होते हुए सतपुड़ा और विदर्भ के क्षेत्रों में हुआ। वे वर्तमान में मुख्य रूप से मध्य भारत के बैतूल, छिंदवाड़ा और वर्धा क्षेत्रों में केंद्रित हैं।

बैतूल, छिंदवाड़ा और वर्धा के क्षेत्रों को स्थानीय रूप से भोयर-पट्टी कहा जाता है, इसलिए यहां रहने वाले पवारों को भोयर-पवार के नाम से जाना जाता है[5]। यह पवार आज भी राजपूताना की मालवी बोली का भ्रष्ट रूप बोलते हैं, जिसे उनके नाम पर भोयरी कहा जाता है [6]

पंवारो के उपनाम

  • पवार (७२ कुल) :

1.      गिरहारे/गिरारे

2.      पराड़कर/ परिहार/

3.      खरपुसे, (केवल छिंदवाड़ा)

4.      बड़नगरे/ नागरे/ बन्नागरे

5.      घाघरे,

6.      छेरके, शेरके (छिंदवाड़ा)

7.      कडवे

8.      पाठे, पाठा / पाठेकर

9.      डोंगरदिये/ डोंगरे

10.  धारफोड/ धारपूरे

11.  चौधरी,

12.  माटे/माटेकर

13.  फरकाड़े

14.  गाडगे

15.  ढोटे/धोटे

16.  देशमुख,

17.  खौसी/खावसी/कौशिक/खवसी/खवसे

18.  डिगरसे/दिगरसे/ दिग्रसे

19.  भादे/भादेकर

20.  बारंगा/ बारंगे

21.  राऊत,

22.  काटोले/गघड़े/गद्रे

23.  दुखी/दूर्वे

24.  किंकर/किनकर

25.  रबडे,

26.  कसाई/कसलीकर,

27.  मनमाडे/मानमुडे

28.  सवाई,

29.  गोरे,

30.  डाला/डहारे

31.  उकार/ओमकार

32.  उघडे,

33.  करदाते/दाते

34.  करंजकर/किरंजकर

35.  कामडी,

36.  कालभूत/कालभोर,

37.  कोडले/कोरडे

38.  हिंगवे /हिंगवा

39.  खपरिये/ खपरे,

40.  गाडरे,

41.  गाकरे/गाखरे

42.  गोहिते/गोहते

43.  चिकाने,

44.  चोपडे,

45.  टोपलें,

46.  ढोले,

47.  ढोबले/ढोबारे

48.  डंढारे,

49.  देवासे,

50.  ढोंडी

51.  नाडीतोड,

52.  पठाडे,

53.  पिंजारे/ पिंजरकर

54.  बरखाडे,

55.  बिरगाडे,

56.  बारबोहरे,

57.  गोंनदिया

58.  बैगने,

59.  बोबडे,

60.  भोभटकर

61.  बुवाड़े/बोवाड़े

62.  ठवरी

63.  मुने/मुन्ने

64.  रमधम

65.  ठुस्सी

66.  रोडले

67.  लबाड,

68.  लाडके,

69.  लोखंडे,

70.  सवाई,

71.  सरोदे

72.  हजारे

other

73.  Bisen (in Chhindwada)




  • कुछ लोग अपने उपनाम की जगह पंवार या पवार भी लगााते है।

( पंवारो के यह ७२ उपनाम राजपूत सैनिक सरदारों के नाम/पदनाम/पदवी/संकेतित नाम है )



एक अच्छी पहल - माँ की स्मृति में शुरू की छात्रवृत्ति-

एक अच्छी पहल -
माँ की स्मृति में शुरू की छात्रवृत्ति- 
श्री नत्थूजी डोंगरे बानूर जिला बैतूल द्वारा अपनी माँ की स्मृति में वर्ष 2014 से अपने गांव के हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी में अध्ययनरत और कक्षा १० वीं और १२ वीं में अधिकतम अंक प्राप्त एक छात्र और एक छात्रा को प्रतिवर्ष 5000 रूपये की छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है। उल्लेखनीय है कि माताश्री का निधन 15 अगस्त को प्रातः 6 बजे हुआ था। हाई स्कूल के एक छात्र और एक छात्रा को 1000 -1000 रूपये की राशि और हायर सेकेंडरी के एक छात्र और एक छात्रा को १५०० -१५०० रूपये की राशि प्रदान की जाती है। इस तरह 5000 रूपये की राशि प्रतिवर्ष 15 अगस्त को शाला में आयोजित गरिमामय कार्यक्रम में प्रदान की जाती है। इस अवसर पर बड़ी संख्या में छात्र छात्राएं और गांव के लोग उपस्थित रहते हैं।शाला में बच्चों को बैठने हेतु बेंच न होने पर श्री नत्थूजी डोंगरे द्वारा 15 बेंच बनाकर शाला को दान किये है ताकि बच्चे सम्मानजनक ढंग से बैठकर अध्ययन कर सके। चित्र उसी अवसर का। श्री नत्थूजी डोंगरे बच्चों को छात्रवृत्ति देते हुए -
हमारे रीति रिवाज़ -
रस्मों में काँसे के बर्तन उपयोग में क्यों लाये जाते हैं ?
हमारे रीति रिवाजों में प्रायः काँसे के बर्तनों का उपयोग ही किया जाता है और दान देने के लिए इन्हें ही प्राथमिकता दी जाती है।विवाह आदि के अवसर पर काँसे के बर्तनों का ही उपयोग किया जाता है। किसी पुरुष परिजन की मृत्यु पर पितर और किसी महिला परिजन की मृत्यु पर पितरीन बनाये जाने का प्रचलन है, जिन्हें भी काँसे के बर्तन ही दानस्वरूप दिए जाते है।
यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल ३ प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं। यही कारण है हमारे रीति रिवाजों में काँसे के बर्तनों का प्रचलन आम है।
"सुखवाड़ा ",सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

ललित निबंध - ताप्ती संस्कृति

ललित निबंध - 
ताप्ती संस्कृति 
ताप्ती वाक है। असत से सत ,तमस से ज्योति ,अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाने वाले मार्ग का निर्देश करती है। ताप्ती काव्य है, इसमें रामायण- सा औदात्य और महाभारत- सा विस्तार है। ताप्ती रसवंती है ,इसमें सहस्त्र -सहस्त्र महाकाव्यों का रस है। ताप्ती कला है। इसके कटान ,ढलान ,उतार- चढाव उसकी कला कृतिया है। ताप्ती गीत है ,लय है ,नाद है। ताप्ती गति ,यति, आरोह -अवरोह है। ताप्ती सृजन धर्मिणी है। वह हर पल ,हर छण ,हर घड़ी ,हर प्रहर ,हर दिन ,हर मास ,हर वर्ष कुछ न कुछ सिरजती रहती है। कभी चट्टानों से कोई अपूर्व आकृति तो कभी कगारों का बाँकपन और कहीं धाराओं की सहस्त्र-सहस्त्र लट। संगीत रचती ताप्ती की कल -कल की ध्वनि और जलप्रपात से गिरते जल की धार की धारदार ध्वनि मन को मोहित करती है। ताप्ती कल्पदा है ,कामरूपा है ,कला विद्या ,काव्य और संगीत की अधिष्ठात्री है।
ताप्ती प्रेयसी है,अथाह रसभरी है। वह आमंत्रित करती है। उसमें उतर जाने को ,खो जाने को और विलीन हो जाने को। ताप्ती धीरा है, प्रशांता है ,मृदु भाषिणी है। वह चिर यौवना है। उसका यौवन और प्रेम मातृत्व में फलिभूत होता है या मुक्ति में। राम ने सरयू की गोद में जन्म लिया ,उससे प्रेम किया और उसी में समाहित हो गए। ताप्ती अंचल का हर राम ताप्ती की गोद में जन्म लेता है ,ताप्ती से प्रेम करता है और अंत में उसी में समाहित हो जाता है। ताप्ती तालाब और ताप्ती किनारे होने वाले उत्तरकर्म इसका प्रमाण है। ताप्ती केवल धरती के भूगोल में ही नहीं बहती ,वह जन -जन के अंतस में भी बहती है। वह अंतःसलिला है। कार्तिक माह में ताप्ती किनारे लगने वाले मेले उसी अंतर्प्रवाह का बाह्य प्रस्फुटन है।
वल्लभ डोंगरे ,सुखवाड़ा ,सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

अतिशयोक्ति नहीं हकीकत - अपने कर्मों से लिखी अपने जीवन की नई इबारत -

अतिशयोक्ति नहीं हकीकत -
अपने कर्मों से लिखी अपने जीवन की नई इबारत -
आज भी भारतीय महिलाएं अच्छे घर और वर के लिए शिव पार्वती का व्रत रखती हैं और उन्हें ही आदर्श गृहस्थ मानती है। आज यदि किसी ऐसी जोड़ी की कल्पना की जा सकती है तो वह जोड़ी है श्री कृष्णकुमार डोबले और श्रीमती निवेदिता डोबले की जिन्होंने अपने कर्मों से अपने जीवन की नई इबारत लिखी है।
श्री कृष्णकुमार डोबले और श्रीमती निवेदिता डोबले द्वारा वर्ष २००७ में सर्वप्रथम अपने गाँव खैरीपेका में सामूहिक विवाह का आयोजन कर समय के साथ चलने हेतु समाज में परिवर्तन की नई लहर उत्पन्न की थी। उसके बाद २०१२ से श्री कृष्णकुमार डोबले और श्रीमती निवेदिता डोबले के मार्गदर्शन में खैरीपेका में प्रतिवर्ष लगातार सामूहिक विवाह का आयोजन हो रहा है।
कुछ दिनों पूर्व ही श्री कृष्णकुमार डोबले की बड़ी बहन श्रीमती गीता कास्लिकार का उज्जैन में आकस्मिक निधन हुआ था तब भी अपने जीजाश्री को सम्बल देने न केवल दोनों युगल श्री कृष्णकुमार डोबले और श्रीमती निवेदिता डोबले उनके पास उपस्थित रहे अपितु उन्होंने तेरवीं का आयोजन न कर केवल श्रृद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन कर दुःख की घडी में भी साहस दिखाने का परिचय दिया।
अभी हाल ही में श्री कृष्णकुमार डोबले खैरीपेका छिंदवाड़ा ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती निवेदिता डोबले पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत छिंदवाड़ा के सम्बल और सहयोग से अपनी माताश्री के देहावसान पर केवल श्रृद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित कर क्षेत्र में नई मिसाल कायम की है। श्री डोबले जी ने अपनी माताश्री शांति बाई डोबले का दसक्रिया कार्यक्रम उज्जैन में आयोजित किया और वहाँ की तीन विकलांग संस्थाओं के बच्चों को अपनी शृद्धानुसार अनुदान राशि उपलब्ध कराई। खैरीपेका में तेरहवीं के दिन केवल श्रृद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया और तेरहवीं में होने वाले संभावित खर्च की राशि से अपने गांव खैरीपेका के मोक्षधाम में विश्रामगृह बनाने का एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसकी मिसाल दूर दूर तक मिलना मुश्किल है।
उल्लेखनीय है उक्त दोनों दंपत्ति द्वारा समाज सुधार पर भाषण देने के स्थान पर समय समय पर समाज सुधार के काम करके जो उदाहरण प्रस्तुत किये जा रहे है वह अनुकरणीय है। भगवान् इन दोनों को दीर्घायु प्रदान कर इनकी जोड़ी को सलामत रखें।
आप चाहे तो इस दंपत्ति को उनके कार्य के लिए बधाई दे सकते है। उनका मोबाइल न है -9584153816
वल्लभ डोंगरे ,"सुखवाड़ा ",सतपुड़ा संस्कृति संस्थान ,भोपाल।

प्रेरणा -बंगाल आसाम से सीखें -

बंगाल आसाम से सीखें -
पढ़ने का जज्बा -जुनून व साहित्यकार को सम्मान देना -
पढ़ने का जैसा जज्बा और जुनून बंगाल में पाया जाता है वैसा भारत में विरला ही देखने को मिलता है। वहाँ किताबें मांगकर या चुराकर नहीं अपितु खरीदकर पढ़ने का शौक है।वहाँ पढ़ने ,गुनने व पढ़े से सीखने का प्रयास किया जाता है। वहां छोटे लेखक को सम्मान दिया जाता है.वहां जन्मदिन ,विवाह ,तीज त्योहार या विवाह वर्षगाँठ पर पुस्तकें भेंट करने का रिवाज है। वहाँ शब्द साधक ,साहित्यकार को समाज में जो सम्मान दिया जाता है वह अन्यत्र विरला ही पाया जाता है। किसी साहित्यकार की मृत्यु पर पूरा बंगाल शोक व्यक्त करने उमड़ पड़ता है। साहित्यकार के घर से लेकर श्मशान घाट तक लोग सड़क किनारे अंतिम दर्शन और विदाई देने के लिए कतारबद्ध खड़े रहते है। हिंदी क्षेत्र में ऐसा सम्मान बड़े बड़े साहित्यकार को भी नसीब नहीं हो पाता। प्रेमचंद की शव यात्रा में 6 और अमृता प्रीतम की शवयात्रा में 7 लोग शामिल हुए थे। साहित्यकार के प्रति समाज का सरोकार आसाम से भी सीखा जा सकता है जहाँ माता -पिता किसी कार्यक्रम में पधारे साहित्यकार के बारे में अपने बच्चों को जानकारी देते हुए देखे जा सकते है। हिंदी क्षेत्र में माता पिता को ही साहित्यकार के बारे में जानकारी नहीं होती ऐसे में अपने बच्चों को जानकारी देते हुए उन्हें देखे जाने का प्रश्न ही नहीं उठता।
सबक -हिंदी क्षेत्र में फेसबुक पोस्ट को पढ़ने व उसपर सार्थक प्रतिकिया व्यक्त करने का प्रतिशत भी नगण्य है। -सतपुड़ा संस्कृति संस्थान भोपाल

हवन का महत्व

     फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमे उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओ को मारती है तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।

(२) टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।

(३) हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होता है अथवा नही. उन्होंने ग्रंथो. में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया की ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा की सिर्फ आम की लकड़ी १ किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टेरिया का स्तर ९४ % कम हो गया। यही नही. उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया की कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर २००७ में छप चुकी है।
रिपोर्ट में लिखा गया की हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है। जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी):-👇

समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं। सूर्य की समिधा मदार की, चन्द्रमा की पलाश की, मङ्गल की खैर की, बुध की चिड़चिडा की, बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गूलर की, शनि की शमी की, राहु दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है।
मदार की समिधा रोग को नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।
हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकार
प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।

होम द्रव्य -

होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।

(१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ी आदि

(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि

(३) मिष्ट - शक्कर, छूहारा, दाख आदि

(४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन जटामांसी आदि

उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।

सामान्य हवन सामग्री -

तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी.

pawar bhoyar powar panwar central obc list

Central List of OBCPrintBack
Shared by राजेश बारंगे पवार
State : Maharashtra
 में यह 216 no 
Powar, Bhoyar Pawar, Bhoyar 
(Note: Entry No. 216 does not include persons having their surnames 
as Pawar or Powar but not belonging to aforesaid caste/community)

12011/12/96-BCC dt. 03/08/1998 (size : .16MB)    PDF
12011/96/94-BCC dt. 09/03/1996 (size : .76MB)    PDF

Shared by राजेश बारंगे पवार

Central List of OBCsPrintBack
State : Madhya Pradesh
12Powar, Bhoyar/ Bhoyaar, Panwar1

2015/15/2008- BCC dt. 16/06/2011
 (size : 3.65MB)    PDF
12011/68/93-BCC(C) dt. 10/09/1993 (size : 7.07MB)    PDF
Shared by राजेश बारंगे पवार
Central List of OBCsPrintBack
State : Chattisgarh
52Powar, Bhoyar/Bhoyaar, Panwar 
12015/2/2007-BCC dt. 18/08/2010 (size : 3.03MB)    PDF
12015/13/2010-B.C.II. Dt. 08/12/2011 (size : 2.96MB)    PDF