Monday 22 June 2020

गानो सनतिवार को



पह्यली आयी आखाडी
चारी तिवार ललकारी
जीवती पोहती
नागोबा कऽ भोवती
नागोबा बसे दाठ्ठा मऽ
नागोबा को मानमोरो
आघं आये पोरो
काजरतीज की कायनी
बसी महालक्षुमी
गनपती आस्याख
पक्स्या को पात्र
नवमी की सवासिन
अखजी अखरपक
पाय पखार पक
दहा ( दस) दिन को दसरो
पाच दिन मऽ माडी
आठ दिन मऽ आठवी
सात दिन मऽ दिवारी
पोटुबाटुना करस घाई
बहिन भाईला वोवारस
बहिन ला राग मोठो
राग को करे पानी
भाई की भयी हानी
बहिन की वाचा तोडो
भाई को मरे घोडो
आघं आयो कारतिक जुरगडो
कारतिक जुरगडा ला दहीहांडी फुटी
बहिन भाई ला जायकन् भेटी

--- सौ. पार्वतीबाई महादेवराव देशमुख
नागपूर

Saturday 20 June 2020

*भूले-बिसरे शब्द* *अंग और आभूषण*



 *पांव को अंगूठा* म-अगुया।
 *पांव की दूसरी उंगली* म- जोड्या।
 *पांव की तीसरी उंगली* म- मच्छी। 
 *पांव की चौथी उंगली* म-
 फुल हिरोडी। 
 *पांव* म -तोड्हा,कडल्य,रुल।
 *कमर* म- करदोड़ा।
 *हाथ का पन्जा* म- आगुड़दान,एकरूप्या, मुन्दी, अठ्ठन्नी, चवन्नी।
 *हाथ* म-पाटली,काकन, बंगडी,गोलेटा,मस्तुरा, माठीदोरा।
 *बाजू* म- बाक्ड़या।
 *गरा* म-सरी,हस,हमेल,
चन्दरहार,एकदानी, चेन,गरसोरी या मंगलसूत्र।
 *नाक* म -नथ, लौंग।
 *कान* म- तनुड़,बुगड़ी,
बारी घुंघरू वाली,
 *माथा* प- बेंदिया,रेकड़ी,
छौका घुंघरू वाली।

कृपया *अंग और आभूषण* को और भी समृद्ध करने का अनुरोध है। आपके सहयोग से हम अपनी धरोहर और संस्कृति की रक्षा कर पाएंगे और आने वाली पीढ़ी को उसे सुरक्षित सौंप पाएंगे।
 *संकलन* -श्री बलराम डहारे, मंडीदीप
आपका " *सुखवाड़ा* " ई-दैनिक और मासिक भारत

*भूले-बिसरे शब्द*

*भूले-बिसरे शब्द* 

 *रांधन घर (रसोई घर) में प्रयुक्त बरतन ,पात्र और उपकरण* 

 *तबेला,कुंडा* _ सब्जी बनाने के लिए प्रयुक्त मिट्टी का बरतन ।
 *हांडी* - खीर ,खिचड़ी या पेज (दलिया) बनाने के लिए प्रयुक्त मिट्टी पात्र ।
 *दोहनी*-कढ़ी , लप्सी,पेज बनाने या गाय का दूध दुहने के लिए प्रयुक्त मिट्टी पात्र। 
 *पाट्या,पाटिया*-कुरोड़ी बनाने के लिए या ताक (मही) रखने का मिट्टी का बड़ा हंडा ।
 *मथानी,माथनी* ‌‌-दही बिलोने के लिए प्रयुक्त यंत्र ।
 *खापरी,खपरा* = रोटी सेंकने हेतु तवा जैसा प्रयुक्त मिट्टी का पात्र।
 *गागड़ा,गगड़ा /गगड़ी*- घी,तेल आदि रखने हेतु प्रयुक्त मिट्टी के छोटे पात्र ।
 *घाघरा,घाघर* = रस,दूध या पानी भरने के लिए प्रयुक्त पात्र।
 *ढोंमना/सैनकी* = बर्तनों को ढकने के लिए गहरे/उथले ढक्कन।
 *छिबला,शिबला* = चावल का मांड पसाने के लिए प्रयुक्त बांस की कमची से बना पात्र।
 *तपोना* =पानी गर्म करने का पात्र,घड़ा ।
 *पैना* =भाप में भोजन पकाने या बफाने  के लिए प्रयुक्त मिट्टी पात्र।
 *सील -लोढ़ा* - मिर्च -मसाला, चटनी पीसने व दाल बांटने के लिए प्रयुक्त पत्थर के पात्र।
 *पनोची* - पानी के पात्र रखने के लिए बना लकड़ी का ऊंचा स्थान।
 *चूल्हा-उल्हा-* भोजन पकाने हेतु बना मिट्टी का मुख्य उपकरण जिसमें लकड़ी व कंडे जलाकर आग उत्पन्न की जाती है।
चूल्हे की बगल में  कम आंच पर भोजन पकाने के लिए बना सहायक उपकरण उल्हा कहलाता है जिसमें चूल्हे की अतिरिक्त आंच और ज्वाला से भोजन पकता है। उल्हे में ईंधन नहीं जलाया जाता।
 *फूंकनी,फोंगरी* - बांस की पोली नली जिसे फूंककर आग परचाने,सुलगाने या प्रज्ज्वलित करने के लिए प्रयुक्त की जाती है।
 *सराक,सलाक* - खापरी ,तवे से मोटी रोटी पलटने के लिए प्रयुक्त लोहे का उपकरण जिसका एक सिरा नुकीला और दूसरा चौड़ा और चपटा होता है।
 *संकलन* -श्री सुताराम छेरके रिधोरा, परासिया, छिंदवाड़ा।
 *आपका "सुखवाड़ा" ई-दैनिक और मासिक भारत।*

भूले-बिसरे शब्द* 002

*भूले-बिसरे शब्द* 
*मुचका* - फसल में डौरा चलाते समय फसल खाने से बचाने हेतु बैलों के मुंह पर बांधा जाने वाला रस्सी से बुना मुंह के आकार का सुरक्षा कवच जैसे कोरोना से बचने के लिए इंसानों द्वारा मास्क लगाया जाता है।
 *मछौंडी* -बैलों के सिर पर दोनों सिंगों के बीच बांधे जाने वाली श्रृंगार सामग्री।
 *बेगड़* - बैलों का श्रृंगार करने हेतु सिंगों पर चिपकाने वाला चमकीला रेपर,पेपर ।
*तीफन* - बीजों की बुआई का उपकरण जिसे बैलों की सहायता से चलाया जाता है
 *डवरा* - फसल के बीच से खरपतवार / घास साफ करने का उपकरण जिसे बैलों सहायता से चलाया जाता है
 *फ़साट* - पेड़ों की टहनियों को काटकर तिफन से बुआई के पश्चात बीजों को ढकने के लिए उपयोग किया जाता है।
 *जामभुरबाहि/ खरड़वाही* -  पहली बारिश पर खरपतवार के अंकुरण के बाद साफ करने के लिए की जाने वाली जुताई ।
 *रुंगना* - हल , तिफन , को पकड़ने का हैंडल ।
 *कासरा* - बैलों को नियंत्रित करने वाली रस्सी 
 *एसन* - बैलों को नियंत्रित करने वाली नकेल ।
 *पास* - लोहे की  पतली पट्टी जिसे खरपतवार निकालने व खेत को बखरने  वाले यंत्र के रूप में उपयोग में लाया जाता है ।
 *घोल्लर* - बैलों के गले मे बांधे जाने वाले ध्वनि यंत्र जो बैलों की सुरक्षा या उनकी स्थिति का अनुमान लगाने के काम आता है।
 *टिनमनी* - बैलों के गले मे बांधे जाने वाले ध्वनि यंत्र  जिसकी आवाज  मधुर व कम होती हैऔर 
 बैलों की सुरक्षा या उनकी स्थिति का अनुमान लगाने के काम आती है।
 *चाड़ा* - जिसका उपयोग तिफन में लगाकर बीजो को डालने के लिए किया जाता है। 
 *दातरा/इरा* - हाथों से उपयोग किया जाने वाला औजार काटने नींदने हेतु उपयोगी। 
 *तुतारी* *पिराना* - यह बास की पतली लकड़ी होती है जो बैलों को हांकने के काम आती है।
 *संकलन* - श्री कोमल दंढारेजी
आपका *सुखवाड़ा* ई-दैनिक और मासिक भारत।

*भूले-बिसरे शब्द* *कुएं से जुड़ी शब्दावली व पहेलियां*

*भूले-बिसरे शब्द* 
 *कुएं से जुड़ी शब्दावली व पहेलियां*    

 *ससनी* - कुएं से पानी निकालने हेतु दो खूंटों पर आड़ा रखा मजबूत लकड़ी  का आधार
 *खूंट* -ससनी को आधार देने हेतु जमीन में गहरे गड़े और खड़े दो खूंट
 *परतवाही*- परोता को गोलाकार घुमने हेतु दो छोरों पर लगे लकड़ी के दो आधार जिसमें परोता की कील फंसाई जाती है।
*परोता* - मोट की सोंड की रस्सी जिसपर चलकर पानी निकालने हेतु बनी गोल सिलेंडर नुमा लकड़ी की आकृति।
*चका* - लकड़ी का गोल चका जिसपर मोट का एट चलकर मोट से पानी निकालने के लिए प्रयुक्त।
 *तोरनी* - ससनी के बीचों-बीच लगे लकड़ी के लगभग एक डेढ़ फीट के दो आधार जिनके ऊपरी छोर पर चके को फंसाने हेतु छेद होते हैं।
 *कील* - चका और परोता के दोनों ओर लगी लोहे की मजबूत राड जिनके सहारे वे तोरनी और परतवाही से जुड़कर गोलकार घुमते हैं।
*समदूर* - एट से समान दूरी पर चलने वाली  मोटी की सोंड को थामी रस्सी।
*मोट* - कुएं से पानी निकालने वाला चमड़े या टीन चादर का बना गोलाकार कंटेनर।
*डांड* - पानी निकासी के लिए खेत में बनी नाली।
*लांघी* - पत्थरों की सहायता से बना ऊंचा अवरोधक।
*जूपना* - बैलों को जोतने के लिए प्रयुक्त मोटी रस्सी।
 *जोत* -  बैलों को नियंत्रित करने हेतु जुवाड़े के दोनों छोर पर बंधी  बैलों के गले में बांधी जाने वाली रस्सी (जोत)।
 *थारला* - ढोर -जानवरों को पानी पिलाने के लिए बनाई गई चौड़ी,गहरी और ऊंची नाली जिसे जल संग्रहन हेतु समय समय पर खोला व बांधा जा सके। 
 *धाव* - मोट से पानी निकालने हेतु बैलों को आगे पीछे चलने के लिए प्रयुक्त ढलान युक्त स्थान।
 *डोहन* - लगभग एक हाथ चौड़ी और तीन हाथ लम्बी लकड़ी की उथली नाली जिसपर सोंड से आसानी से पानी उड़ेला जा सके। 
 *कोंड* - मोट को लटकाने के लिए प्रयुक्त मजबूत गोलाकार रिंग।
 *नथनी* - सोंड के एक छोर पर चार छेदों में लगी रस्सी  जो समदूर से जुड़ती है।
*कुएं से जुड़ी कुछ पहेलियां* 
१. इत सी जाय  उगी मुगी,उत सी आवय गाल फुगी।
२. सर सपट गप गाय, तीन मुण्ड दस पाय।
आठ आटानी,बारा बेनी,दो तोरनी,चार चौकड्या।
३.सर सराटा ऊपर कांटा,जी नी चिह्ने,ओको बाप मराठा।

 *आपका सुखवाड़ा ई-दैनिक और मासिक भारत।*

*भूले-बिसरे शब्द** 001


बोली -भाषा के पुराने व अप्रचलित शब्द मरते जाते हैं और नए शब्द जगह भी बनाते जाते हैं। कुछ मृत या मरनासन्न शब्द पाठकों से साझा किए जा रहे हैं-

*लिलपी*-प्रथम बारिश के बाद अंकुराया  या ऊगा चारा (हरा घास-फूस), गर्मी भर सूखा घास खाने के कारण ऊब चुके जानवर  जिसे चरने हेतु ललचाते और चाव से चरते हैं।
 *सौकास*- सुविधाजनक ढंग से, आराम से।
 *ढेरा* -  धन के आकार की लकड़ी से बनी तकली जैसी आकृति जिसे घुमाकर उसपर सन,अम्बाड़ी के लम्बे रेशों को रस्सी बुनने हेतु आटा जाता है, जिससे रस्सी तैयार की जाती है।  
 *पानुड़* -गन्ने के सूखे पत्ते। 
 *धाव*- कुएं से मोट द्वारा बैलों की सहायता से पानी निकालने हेतु बैलों के आगे-पीछे चलने हेतु बनाई गई विशेष ढलान युक्त जगह,राह।
 *सुखवाड़ा* -* सुखद-मंगलमय कामना और समाचार।
*अगवानी*- आगे बढ़कर स्वागत- अभिनंदन करना।
*बारात झेलना* - गांव में बारात के आगमन पर अनौपचारिक रूप से अतिथियों के बैठने व पानी पिलाने की व्यवस्था करना।
*जनवासा* - विवाह के पूर्व बारातियों को रुकवाने की व्यवस्था , भोजनोपरान्त बाराती जहां विश्राम कर सकें। 
*उतारा* - प्रथम बारिश के बाद खेत में ऊगा हुआ निंदा या खरपतवार।


 *आपका "सुखवाड़ा" ई-दैनिक और मासिक भारत।*

पानी जीव की कहानी

पानी जीव की कहानी

पानी जीव की कहानी
पानी जीव ला आधार
करम को भागिरथ
गंगा पुंजस पीतर.   ।१।

पानी जीव की कहानी
दूध माऊली को सार
बहे नस नस मिन्
रगत को उपकार. ।२।

पानी जीव की कहानी
वोलऽ माती ला पाझर
वटी हिवरं खन की
भयी पेट ला भाकर. ।३।

पानी जीव की कहानी
झलारस मुंडा पर
सूर्व्य चंदर को नातो
नाव गोंद्यो आंग पर. ।४।

पानी जीव की कहानी
करे चर्रऽ  चर्रऽ धार
गुन हिरा को दिखाडे
जिंदगी की तलवार. ।५।

पानी जीव की कहानी
वको अगास मऽ घर
माया माती पर वोकी
झलकावे समिंदर. ।६।

पानी जीव की कहानी
वकी भावना अपार
मन टिचकेच जरा
बहे पापनी को पार. ।७।

पानी जीव की कहानी
सुख दुख ला हाजर
चव मीठ की हिरदा
भाव बोवस साखर. ।८।

पानी जीव की कहानी
दिसे स्यांत खालऽ वर
समायकन् साराला
धरी ताकत वज्जर.  ।९।

पानी जीव की कहानी
इंद्रधनुस फुलोर
आस बादल की झरे
नाचवस मनमोर  ।१०।

पानी जीव की कहानी
संगऽ जिंदगानी भर
सऱ्यो सरन को दाह
जीव पानी कोच घर. ।११।

-- सुरेश महादेवराव देशमुख , नागपूर

Monday 8 June 2020

🌧️ डोरा मिरुग सपन 🌧️

🌧️ डोरा मिरुग सपन 🌧️

नातो भूई आभार को
रहे माय बाप वानी
जीव जंतू को आसरो
वोकनच जिंदगानी

        पंचमहाभूत सार
        घरं दारं आबादानी
        भेदे तमाम असार
        भारे तन मन पानी

डोरा मिरुग सपन
बहे जीवन कहानी
झड भावना की लागी
मन आये ना बरानी

        भूई कुस उजयेन
        नवो जीव धरे बानी
        ढेलो माती को धकाडे
        दुय हात जोडस्यानी

ठेंब ठेंब अमरित
तिस समिंदर वानी
उबडाये हिरदाला
असो मिरुग गा दानी

©️✒ सुरेश महादेवराव
            देशमुख , नागपूर

🥦 झाड पेड गनगोत 🥦

🥦 झाड पेड गनगोत 🥦

आयी बड सावितरी
झाड कुडी की गुफन
नातो जलम जलम
बड देव को पूंजन

       सूत पिवरो गुंडारे
       साजे नाता को बंधन
       बाजे पायपट्टी पाय ऽ
       आंग ऽ मह्यके चंदन

झाड पेड गनगोत
रह्ये सिवार आंगन
फेरा माऱ्या सातडाव
हरख्यास देवांगन

        मुरी अगास मऽ धरे
        जीव धरितरी दान
        झाड पाखरू कऽ संगऽ 
        नाता गोताला आंदन

चाले जलम जलम
असी जनुक तिफन
नाद अनाहत गुंजे
भिर् भिरस गोफन

©️✒ सुरेश महादेवराव
           देशमुख , नागपूर