Saturday 16 December 2023

72 गोत्र पवारो के गोत्र, कुलदेवी-देवता एवं वंश

 ७२ कुल पवारो के गोत्र, कुलदेवी-देवता एवं वंश 

 

गोत्र- परिहार,  कुल देवता- विष्णुकुलदेवी- चामुंडा,  वंश-अग्नि

 

गोत्र- चिकाने, देवासे, धारपुरे, राठउत, हजारे, पठारे, गाड़के, फरकाड़े, गिरहारे, लावड़े, डालू (डहारे), सवाई, ढोले, ऊंकार, टोपले, लावरी, माटेकुल देवता- शंकरकुलदेवी-दुर्गा,  वंश-अग्नि

 

गोत्र- बारंगा, किरंजकार, दुखी, खपरिया, डोंगरदिए, डिगरसे, कुल देवताशंकरजी, कुलदेवी- चंडी, वंश-चन्द्र से अग्नि

 

गोत्र- अरेलकिया, गकड़िया, पाठा, चौधरी, मानमोड़िया, देशमुख, हिंगवा, गोहिते, गोंदिया, धोटा, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-चंडिका, वंश-सूर्य

 

गोत्र-ढोडी, कामड़ी, मुन्नी, गोड़लिया, कालभूत, उकड़लिया, कुल देवताशंकरजी, कुलदेवी-कच्छपवाहिनी, वंश-सूर्य

 

गोत्र-गाकरिया (घाघरिया), रबड़िया, पिंजारा, किकर, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-विंध्यवासिनी, वंश-सूर्य

 

गोत्र-गोरिया, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-विंध्यवासिनी, वंश-सूर्य

 

गोत्र-गाडरी, कसाई, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-महाकाली, वंश-चन्द्र

 

गोत्र-सरोदिया, बोबड़ा, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-महाकाली, वंश-चन्द्र

 

गोत्र-बरगाड़िया, बोगाना, बागवान, बुहाड़िया, बरखेड़िया, कुल देवताशंकरजी, कुलदेवी-महालक्ष्मी, वंश-चन्द्र

 

गोत्र- बोबाट, खौसी, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-काली, वंश, चन्द्र

 

गोत्र-नाड़ीतोड़, खरगोसिया, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-काली, वंश चंद्र

 

गोत्र- डुढारिया, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-काली, वंश-चंद्र

 

गोत्र-बारखुहारा, भादिया, कड़वा, र्मधम, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवीकाली, वंश-चंद्र

 

गोत्र- करदातिया, चोपड़ा, रमधम, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-काली, वंश-चन्द्र

 

गोत्र- करदातिया, चोपड़ा, लाड़किया, लोखड़िया, सेरकिया, बड़नगरिया, ठावरी, ठुस्सी, ढोबारिया, कुल देवता-शंकरजी, कुलदेवी-दधिमाता, वंश-ऋषि।

 by

Rajesh barange Pawar

पवारों की प्रशस्ति

पवारों की प्रशस्ति


  • गोत्र लेकर चलने वालों में क्षत्रिय श्रेष्ठ है-भगवान बुद्ध
  • क्षत्रियों का उद्देश्य उदारता और दया है-चीनी यात्री हवेनसांग, 630 ई
  •  क्षत्रिय शक्तिशाली और बहादुर होते हैं और वे परम्परागत रीति रिवाजों का पालन करते हैं। राजपूत देशभक्त और कूलीन होते हैं-टॉड 
  • राजपूत महान सैनिक होते थे-कार्ल मार्क्स 
  • राजपूत भारतीय रक्षा पंक्ति की रीढ़ है- पं. जवाहरलाल नेहरु
  •  राजपूत जोखिम उठाने वाले और साहसी होते हैं-डॉ राधाकृष्णन्‌ 
  • राजपूत हिन्दू समाज के रक्षक थे-डॉ मीनाक्षी जैन 
  • राम और कृष्ण के बाद दिलों पर राज करने वाले दो ही राजा हुए-राजा भोज और विकमादित्य जिनकी लोक गाथाएं राम और कृष्ण की लोकगाथाओं की तरह घर-घर में गाई व कही जाती है-महेश श्रीवास्तव
  • शूरवीरता, तेज, धेर्य, चपलता, युद्धभूमि से नहीं भागने का स्वभाव और पुत्रतुल्य प्रजा की रक्षा का भाव क्षत्रियों का स्वाभाविक कर्म है। गीता, श्लोक, 43, अध्याय 48
REF- Sikho Sabak Pawaro सीखो सबक पवारो

Sunday 10 December 2023

पवारी बोली- भाषा में उपलब्ध है प्रचुर मात्रा में लोक साहित्य

 

*पवारी बोली- भाषा में  उपलब्ध है  प्रचुर मात्रा में लोक साहित्य*

https://www.blogger.com/blog/posts/465678208159135636



*
समाज सदस्यों द्वारा साहित्य सृजन में रुचि न लेने के कारण पवारी बोली- भाषा का विकास संभव न हो सका*

बीसवीं सदी पवारी बोली- भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन के रूप में जानी जाती है जिसमें पवारी लोक साहित्य का संरक्षण एवं संवर्धन किया गया। 21वीं सदी में पवारी बोली-भाषा में साहित्य सृजन पर जोर दिया जाने लगा है।

1980
के दशक में स्व डॉक्टर नाथूराम जी कालभोर पीएचडी,
डी लिट आगरा द्वारा *"कालभूत"* शीर्षक से समाज की पहली एक पारिवारिक पत्रिका प्रकाशित की जाती थी जिसमें पवारी लोक साहित्य देखने- पढ़ने को मिलता था। लगभग उसी समय स्व श्री मुन्नालाल देवासे द्वारा पवारी बोली-भाषा में सृजित लोक साहित्य का संकलन और सर्जन किया जाता था जिसे समय- समय पर आकाशवाणी में प्रसारित और अखबारों में प्रकाशित किया जाता था।

स्व श्री गोपीनाथ कालभोर खंडवा द्वारा 1984 में "भोज पर्णिका" शीर्षक से एक त्रैमासिकी का प्रकाशन किया जाता था जिसमें पवारी बोली-भाषा में सृजित लोक साहित्य का प्रचार-प्रसार किया जाता था।

लगभग इसी समय स्व श्री विट्ठल नारायण जी चौधरी द्वारा सृजित पवारी बोली-भाषा की रचनाओं का आकाशवाणी से प्रसारण किया जाता था। डॉक्टर ज्ञानेश्वर जी टेंभरे  द्वारा संपादित पत्रिका *"पवार संदेश" में* भी यदा-कदा पवारी में रचनाएं प्रकाशित करने के उदाहरण देखने -पढ़ने को मिले हैं।  फरवरी 2019 में प्रथम पवारी साहित्य सम्मेलन तिरोड़ा के उद्घाटन अवसर पर पवारी बोली-भाषा पर केंद्रित संकलन  डा ज्ञानेश्वर टेंभरेजी के लेखन-संपादन में प्रकाशित किया गया है।श्री जयपाल पटलेजी नागपुर द्वारा धार्मिक और आध्यात्मिक साहित्य का पवारी बोली-भाषा में अनुवाद किया गया है और प्रकाशित किया गया है।

श्री वल्लभ डोंगरे भोपाल द्वारा 1980 से  पवारी बोली -भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु कार्य किया जा रहा है। "सुखवाड़ा" त्रैमासिक पत्र में भी पवारी बोली-भाषा की कई रचनाएं प्रकाशित की गई है। बाद में "सुखवाड़ा" मासिक कर दिया गया जिसके द्वारा  पवारी शब्दकोश, पवारी मुहावरे, पवारी लोकोक्ति, पवारी कहावतें, पवारी पहेलियां और पवारी बोली -भाषा और संस्कृति पर केंद्रित कई पुस्तकें प्रकाशित की गई हैं। अब "सुखवाड़ा" दैनिक कर दिया गया है जो पवारी बोली- भाषा और संस्कृति के संरक्षण- संवर्धन हेतु प्रतिबद्ध है।

श्रीमती पार्वती बाई देशमुख नागपुर द्वारा भी पवारी बोली में लोक साहित्य को स्वर दिए गए हैं। श्रीमती पार्वती बाई देशमुख निरक्षर हैं जिनके लोक साहित्य को उन्हीं के पुत्र श्री सुरेश देशमुख  द्वारा लिपिबद्ध कर  पुस्तकाकार में प्रकाशित किया गया है। श्रीमती पार्वती बाई देशमुख के योगदान को देखते हुए उन्हें  विदर्भ रत्न सम्मान से सम्मानित  किया गया है।

वर्ष 2019 में डॉ ज्ञानेश्वर टेंभरे  जी द्वारा पवारी साहित्य  संस्कृति एवं कला  मंडल का गठन कर पवारी बोली-भाषा के उन्नयन हेतु सार्थक कदम उठाया गया है। उनके इस विचार को श्री लखन सिंह कटरे जी ,श्री देवेंद्र चौधरी द्वारा पल्लवित- पुष्पित किया जा रहा है। श्री तुफान सिंह पारधी द्वारा पवारी बोली मैं पीएचडी और अन्य शोध कार्य किए जा रहे हैं। डॉक्टर शारदा कौशिक द्वारा पवारी बोली पर शोध किया गया है। पुष्पक देशमुख मुलताई पवारी लोकगीत पर केंद्र सरकार द्वारा फेलोशिप प्रदान की गई है।

डॉ मंजू अवस्थी द्वारा पवारी बोली-भाषा पर शोध कार्य किया गया है। साथ ही डॉक्टर वर्षा खुराना द्वारा अपने मार्गदर्शन में पवारी बोली पर शोध कार्य कराए गए हैं। डॉक्टर शारदा कौशिक को आपके मार्गदर्शन में ही पवारी बोली -भाषा में पीएचडी अवॉर्ड हुई है।

श्री वल्लभ डोंगरे द्वारा रचित पवारी लोकगीत  "बनन चल्या तुम लाड़ा"शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक के कई लोकगीत गाकर छात्र -छात्राओं ने शाला स्तर से लेकर राज्य स्तर तक कई पुरस्कार प्राप्त किए हैं। श्री वल्लभ डोंगरे की ही पवारी बोली की रचना "मक्या की पेरी रोटी प भेदरा की चटनी सी माय" की ऑडियो रिकॉर्डिंग दिल्ली में लोक कला संस्कृति विभाग में श्री पुष्पक देशमुख द्वारा प्रस्तुत करने पर उन्हें लोकगीत पर फेलोशीप अवार्ड हुई है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि स्व श्री गोपीनाथ कालभोर खंडवा द्वारा पवारी रचनाकारों की काव्य रचनाओं का संकलन किया गया था जिसे हिन्दी ग्रंथ अकादमी भोपाल द्वारा वर्ष 2015-16 में पुस्तकाकार में प्रकाशित किया गया था।

इसी कड़ी में श्री देवेंद्र चौधरी द्वारा मराठी काव्य गोष्ठी यवतमाल में पवारी बोली में वर्ष 2019 में प्रस्तुति देकर लोगों का ध्यान पवारी बोली-भाषा के प्रति आकर्षित किया गया है। वर्तमान में श्री देवेंद्र चौधरी पवारी बोली के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सोशल मीडिया पर पवारी बोली-भाषा में रचनाएं लिखने हेतु रचनाकारों को     प्रेरित-प्रोत्साहित  कर रहे हैं। इन रचनाओं का श्री लखनसिंह जी कटरे द्वारा निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाकर रचनाकारों को प्रेरित प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उन्हें ई प्रशस्ति-पत्र प्रदान किए जाते हैं। पवारी साहित्य संस्कृति और कला मंडल प्रति 3 माह में पवारी काव्य गोष्ठी का भी आयोजन करता है जिससे पवारी बोली- भाषा के विकास में गति आई है। राष्ट्रीय भर्तृहरि-विक्रम-भोज पुरस्कार समिति द्वारा पवारी बोली -भाषा के संरक्षण- संवर्धन हेतु किए गए सराहनीय कार्यों के लिए योगदानकर्ता को पुरस्कृत किया जाता है।

फेसबुक और व्हाट्सएप समूह में भी समय-समय पर पवारी बोली- भाषा की रचनाएं देखने और पढ़ने को मिल जाती है जो अपनी बोली- भाषा और संस्कृति के प्रति प्रेम और संरक्षण की भावना ही प्रदर्शित करती है।

बोलते -बोलते बोली और  खींचते-खींचते पानी आता है। मराठी में एक कहावत है-ज्या घरी आई नाई,त्या घरी काई नाई।अपनी बोली भाषा बचाकर ही हम अपनी संस्कृति को बचा सकते हैं क्योंकि जिस घर में मां और माय बोली नहीं होती वह घर घर नहीं कहलाता। संस्कृति विहीन व्यक्ति पशु की भांति होता है। व्यक्ति के अंदर व्यक्ति को जिंदा रखने के लिए अपनी बोली- भाषा का ज्ञान जरूरी है।

पवारी बोली- भाषा के प्रमुख रचनाकारों में 

स्व डॉक्टर नाथूराम कालभोर आगरा

स्व श्री मुन्ना लाल देवासे भंडारा

स्व श्री विट्ठल नारायण चौधरी नागपुर,

स्वर्गीय श्री गोपीनाथ कालभोर खंडवा,

श्री जयपाल पटलेजी नागपुर,

श्री मनराज पटले

डॉक्टर ज्ञानेश्वर टेंभरे जी नागपुर,

श्री लखनसिंह कटरे 

तिरोड़ा, श्री देवेंद्र चौधरी तिरोड़ा

श्री वल्लभ डोंगरे भोपाल,

डॉक्टर शारदा कौशिक मुलताई,

श्रीमती पार्वती बाई देशमुख नागपुर,

डॉक्टर तुफान सिंह पारधी,

श्री शेखराम येळेकर,

श्री रणदीप बिसने

श्री पालिकचंद बिसने,

श्री देवेंद्र रहांगडाले

श्री आशिष अंबुले,

श्री गुसाई गिरारे पांढुर्णा,

श्री तुकाराम किंकर पांढुर्णा,

श्री युवराज हिंगवे सौंसर ,

श्री परसराम परिहार छिंदवाड़ा आदि प्रमुख हैं।

*
आपका "सुखवाड़ा" ई-दैनिक और मासिक।*

Saturday 2 December 2023

पंवार नाम से जाने जाने वाले कुछ उपनाम निम्नलिखित हैं:

 पंवार नाम से जाने जाने वाले कुछ उपनाम निम्नलिखित हैं:


1. गिरहारे/गिरारे

2. पराड़कर/परिहार

3. खरपुसे (केवल छिंदवाड़ा)

4. बड़नगरे/नागरे/बन्नागरे

5. घाघरे

6. छेरके/शेरके (छिंदवाड़ा)

7. कडवे

8. पाठे/पाठा/पाठेकर

9. डोंगरदिये/डोंगरे

10. धारफोड/धारे/धारपूरे

11. चौधरी

12. माटे/माटेकर

13. फरकाड़े

14. गाडगे

15. ढोटे/धोटे

16. देशमुख

17. खौसी/खावसी/कौशिक/खवसी/खवसे

18. डिगरसे/दिगरसे/दिग्रसे

19. भादे/भादेकर

20. बारंगा/बारंगे

21. राऊत

22. काटोले/गघड़े/गद्रे

23. दुखी/दूर्वे

24. किंकर/किनकर

25. रबडे

26. कसाई/कसलीकर

27. मनमाडे/मानमुडे

28. सवाई

29. गोरे

30. डाला/डहारे

31. उकार/ओमकार

32. उघडे

33. करदाते/दाते

34. करंजकर/किरंजकर

35. कामडी

36. कालभूत/कालभोर

37. कोडले/कोरडे

38. कुडिके/कुहीके (केवल वर्धा)

39. खपरिये/खपरे

40. गाडरे

41. गाकरे/गाखरे

42. गोहिते/गोहते

43. चिकाने

44. चोपडे

45. टोपलें

46. ढोले

47. ढोबले/ढोबारे

48. डंढारे

49. देवासे

50. ढोंडी

51. नाडीतोड

52. पठाडे

53. पिंजारे/पिंजरकर

54. बरखाडे

55. बिरगाडे

56. बारबोहरे

57. बिसेन (केवल छिंदवाड़ा)

58. बैगने

59. बोबडे

60. भोभटकर

61. भुसारी

62. भोंगाडे

63. मुने/मुन्ने

64. रमधम

65. राखडे

66. रोडले

67. लबाड

68. लाडके

69. लोखंडे

70. सवाई

71. सरोदे

72. हजारे

73. हिंगवे/हिंगवा

74. बुवाड़े/बोवाड़े

75. ठवरी

76. ठुस्सी



इन उपनामों के माध्यम से पंवार के विभिन्न बैतूल छिंदवाड़ा परिवारों को पहचाना जा सकता है।