Sunday 5 July 2020

# भोयरी संस्कृति - ४ #* लोकचित्रकला की अनोखी भोयरी संस्कृति *

# भोयरी संस्कृति - ४ #
* लोकचित्रकला की अनोखी भोयरी संस्कृति *
लोकचित्रकला : तिवार , ब्याह, संस्कार , सुभ घडी पर होन वाली चित्रकारी भोयर समाज मऽ थोडऽबूत फरक सोडकन् येकसारखीच सऽ , मंग वूई महाराष्ट्र का वर्धा - नागपूर जिला रहे या मध्यप्रदेश का बैतूल - छिंदवाडा जिला . 
लोकचित्रकला कला कला को आदिम रूप आय. येनऽ लोकचित्रकला मऽ सूर्व्य , चंदर , पीतर , जनावर , पाखरु , बाई , मानुस , भगवान , गाय - बइल , पोटु - बाटू , भाई - बहिन ,कमल , बेल - फूल - पत्ती , भूमिती की आकृती , सस्तिक , नागोबा , हत्ती , घोडो , रथ , पालखी , झाड काहाडकन् अमूर्त ला मूर्त रूप देन को सार्थक प्रयास करना मऽ आवस. लोकचित्र कला का प्रतिक आनऽ मतलब को अभ्यास इ अलग च चिंतन को विस्यय सऽ , जी आज कऽ जुग मऽ जरुरी सऽ . येमकऽ चितरंग का कई रूप सऽ . येक ही चितरंग का लय मतलब निकरस. येनऽ चित्रकला मऽ अनगढ साजरपन आनऽ अनोखोपन सऽ . येनऽ अनगढता कऽ कारन वोमऽ फयलाव ( विस्तार ) की अनन्त सम्भावना रव्हस. या कला हर बार नवी लागस पर येमऽ कई असा तत्व बी रव्हस जी मूल स्वरूप ला बनायकन् राखस. येनऽ कला को समग्र नजरियो , या बडी बात सऽ . या कला येकलऽ मानुस साठी नही त् समाज साठी रव्हस , जी सहजीवन की प्रेरना देस. येमऽ सहज अभिव्यक्ती , जन - जन की आस्था आनऽ सुखदुख की कथा रव्हस. या कला सिरफ सुभसकुन , उपरी उपरी की सुन्दरता च नही रव्हस तऽ वोमऽ गह्यरो साजरपन , सीख , प्रेरना रव्हस .
चितरंग / चऊक काहाडन की जागा : चवरी जवर की दिवाल , चवरी आघऽ की जागा , दरुजा जवर की दिवाल , दरुजा जवर की जमीन , दाठ्ठो , तुरसी जवर की जागा , आंगनो , ज्यान पूंजा मांडी वा जागा , चवरंग कऽ खलतऽ की जागा , बोहला की जागा , मोह्यतूर की डेर - माथनी जवर की जागा , मोह्यतूर की जागा , दिवा - कलस कऽ भोवताल ....
चितरंग काहाडन को , चऊक पूरन को सामान / साधन : गेरु , चुनो , गहू को पीठ ( आटो ) , तूप , हरद , चऊर को पीठ , रांगोरी , कुंभार को रंग ,  कुची ( बरस ) , रु लपेटी आगकाडी , साच्यो , ठप्पो , आपला बोट ( उंगली ) ना ...
बेगरऽ बेगरऽ परसंग , सन तिवार ला बेगरो बेगरो रंग को माध्यम आनऽ डिझाईन का चितरंग काहाडन की / चऊक पूरन की भोयरी परम्परा आनऽ संस्कृति सऽ .
१. जीवती : चऊर कऽ पीठ को रंग बनायकन् चवरी / दिवरा कऽ जवर की दिवाल पर डवरो - डुपन , बखर , तिफन ,नागर बंडी असा खेती कऽ काम का साधन को चितरंग काहाडस . वोकऽ संगच बइल जोडी ,गडी मानुसना को बी चितरंग काहाडस . वोनऽ चितरंग ला चवखुटी रेस काहाडकन् फ्रेम बनावस . हरद - कुकू - अकसिद , पिवरं धागा कन् पूंजा करस. 
२. नागपंचमी : नागपंचमी ला चवरी जवर आनऽ दरुजा कऽ दुय बाजू कितऽ तूप येनऽ माध्यम को बापर करकन् नागोबा , बिचू का चितरंग काहाडस / लिखस . हरद - कुकू , अकसिद लगायकन् उनकी पूंजा करस . 
३. पोहती / पोयती ( रक्षाबंधन ) : पोयती कऽ दिन कुंभारी रंग बापरकन् बहुड्डो लेकन पोटी , पालखी , तलवार लेकन घोडापर बस्या भाईना , हत्ती असा दिवाल भर चितरंग काहाडस . उनकी बी हरद - कुकू , अकसिद लगायकन् पूंजा करस.
४. गोकुळाष्टमी / जन्माष्टमी : येनऽ दिन तूप कन् चितरंग काहाडस. भगवान किस्नं , गोप - गोपी , गवळनना , गाय - बासरुना असो गोकुळ को चितरंग काहाडस . येला पन् चवखुटी बाॅर्डर काहाडस . आन् इनकी पूंजा करस.
५. पोरो ( पोळा ) :  पोरा कऽ दिन गेरु कन् जू ला रंगायकन् दाठ्ठा मऽ धरस. चवरी जवर कऽ दिवाल पर जेतरा भाईना होयेन उनका हरद कन् चितरंग काहाडस . आन् वोकी बी पूंजा करस.
६. सराध ( श्राध्द ) : सराध मऽ चौथ , पंचमी , सप्तमी असो जेनऽ दिन जमेन वोनऽ दिन कागुर डावस . पीठ कन् घर मऽ आवनीवाला पीतर का पायना काहाडस . नवमी ला सवासिन पीतर की पूंजा करस. 
७ . अखरपक ( सर्वपित्री दर्श अमावास्या ) : अखरपक कऽ दिन पीठ कन् पीतर का घर कऽ बाहिर जातानी का पायना मांडस . दरुजा ला तूप लगावस . पीठ कनच जमीनपर पीतरना काहाडस . वोकऽ वरतऽ दिवाल मऽ सलाक / सरुता मऽ सवारी - बडो टोचकन् धरस . वोकऽ खलतऽ निवो धरस . बाद मऽ सवारी - बडा परीन तूप सोडस जी ठेंब ठेंब निवा पर पडस . येला पीतर की स्यिदोरी कव्हस. 
८. दिवारी / गायगोंदन : गायगोंदन कऽ दिन दुय हात की मुठना गेरु मऽ भिजायकन् आंगना मऽ वोका ठप्पा मारस. वुई गाय कऽ खुर वानी दिसस . 
९ . रथसप्तमी :  रथसप्तमी पुस मह्यनाकऽ हर इतवार की सूर्व्यपूंजा होन कऽ बाद मऽ आवस . आपलो जीवन सूर्व्याकनच सऽ . येनऽ दिन आंगना मऽ तुरसी जवर रांगोरी कन् रथ पर सवार सूर्व्यदेव को चितरंग काहाडस. पिडा पर वोकऽ नाव्हन धोवन साठी सारो सामान , आयनो , तेल , फनी - कंगवो धरस . वहानच गवरी पर गाडगा मऽ  उतू जायेन असो खीर को निवद / परसाद बनावस . हरद - कुकू , अकसिद कन् सूर्व्यदेव की पूंजा करस .

( स्रोत : सौ . पार्वतीबाई महादेवराव देशमुख )
लेखक : सुरेश महादेवराव देशमुख , नागपूर   मो. 7066911969

Monday 22 June 2020

गानो सनतिवार को



पह्यली आयी आखाडी
चारी तिवार ललकारी
जीवती पोहती
नागोबा कऽ भोवती
नागोबा बसे दाठ्ठा मऽ
नागोबा को मानमोरो
आघं आये पोरो
काजरतीज की कायनी
बसी महालक्षुमी
गनपती आस्याख
पक्स्या को पात्र
नवमी की सवासिन
अखजी अखरपक
पाय पखार पक
दहा ( दस) दिन को दसरो
पाच दिन मऽ माडी
आठ दिन मऽ आठवी
सात दिन मऽ दिवारी
पोटुबाटुना करस घाई
बहिन भाईला वोवारस
बहिन ला राग मोठो
राग को करे पानी
भाई की भयी हानी
बहिन की वाचा तोडो
भाई को मरे घोडो
आघं आयो कारतिक जुरगडो
कारतिक जुरगडा ला दहीहांडी फुटी
बहिन भाई ला जायकन् भेटी

--- सौ. पार्वतीबाई महादेवराव देशमुख
नागपूर

Saturday 20 June 2020

*भूले-बिसरे शब्द* *अंग और आभूषण*



 *पांव को अंगूठा* म-अगुया।
 *पांव की दूसरी उंगली* म- जोड्या।
 *पांव की तीसरी उंगली* म- मच्छी। 
 *पांव की चौथी उंगली* म-
 फुल हिरोडी। 
 *पांव* म -तोड्हा,कडल्य,रुल।
 *कमर* म- करदोड़ा।
 *हाथ का पन्जा* म- आगुड़दान,एकरूप्या, मुन्दी, अठ्ठन्नी, चवन्नी।
 *हाथ* म-पाटली,काकन, बंगडी,गोलेटा,मस्तुरा, माठीदोरा।
 *बाजू* म- बाक्ड़या।
 *गरा* म-सरी,हस,हमेल,
चन्दरहार,एकदानी, चेन,गरसोरी या मंगलसूत्र।
 *नाक* म -नथ, लौंग।
 *कान* म- तनुड़,बुगड़ी,
बारी घुंघरू वाली,
 *माथा* प- बेंदिया,रेकड़ी,
छौका घुंघरू वाली।

कृपया *अंग और आभूषण* को और भी समृद्ध करने का अनुरोध है। आपके सहयोग से हम अपनी धरोहर और संस्कृति की रक्षा कर पाएंगे और आने वाली पीढ़ी को उसे सुरक्षित सौंप पाएंगे।
 *संकलन* -श्री बलराम डहारे, मंडीदीप
आपका " *सुखवाड़ा* " ई-दैनिक और मासिक भारत

*भूले-बिसरे शब्द*

*भूले-बिसरे शब्द* 

 *रांधन घर (रसोई घर) में प्रयुक्त बरतन ,पात्र और उपकरण* 

 *तबेला,कुंडा* _ सब्जी बनाने के लिए प्रयुक्त मिट्टी का बरतन ।
 *हांडी* - खीर ,खिचड़ी या पेज (दलिया) बनाने के लिए प्रयुक्त मिट्टी पात्र ।
 *दोहनी*-कढ़ी , लप्सी,पेज बनाने या गाय का दूध दुहने के लिए प्रयुक्त मिट्टी पात्र। 
 *पाट्या,पाटिया*-कुरोड़ी बनाने के लिए या ताक (मही) रखने का मिट्टी का बड़ा हंडा ।
 *मथानी,माथनी* ‌‌-दही बिलोने के लिए प्रयुक्त यंत्र ।
 *खापरी,खपरा* = रोटी सेंकने हेतु तवा जैसा प्रयुक्त मिट्टी का पात्र।
 *गागड़ा,गगड़ा /गगड़ी*- घी,तेल आदि रखने हेतु प्रयुक्त मिट्टी के छोटे पात्र ।
 *घाघरा,घाघर* = रस,दूध या पानी भरने के लिए प्रयुक्त पात्र।
 *ढोंमना/सैनकी* = बर्तनों को ढकने के लिए गहरे/उथले ढक्कन।
 *छिबला,शिबला* = चावल का मांड पसाने के लिए प्रयुक्त बांस की कमची से बना पात्र।
 *तपोना* =पानी गर्म करने का पात्र,घड़ा ।
 *पैना* =भाप में भोजन पकाने या बफाने  के लिए प्रयुक्त मिट्टी पात्र।
 *सील -लोढ़ा* - मिर्च -मसाला, चटनी पीसने व दाल बांटने के लिए प्रयुक्त पत्थर के पात्र।
 *पनोची* - पानी के पात्र रखने के लिए बना लकड़ी का ऊंचा स्थान।
 *चूल्हा-उल्हा-* भोजन पकाने हेतु बना मिट्टी का मुख्य उपकरण जिसमें लकड़ी व कंडे जलाकर आग उत्पन्न की जाती है।
चूल्हे की बगल में  कम आंच पर भोजन पकाने के लिए बना सहायक उपकरण उल्हा कहलाता है जिसमें चूल्हे की अतिरिक्त आंच और ज्वाला से भोजन पकता है। उल्हे में ईंधन नहीं जलाया जाता।
 *फूंकनी,फोंगरी* - बांस की पोली नली जिसे फूंककर आग परचाने,सुलगाने या प्रज्ज्वलित करने के लिए प्रयुक्त की जाती है।
 *सराक,सलाक* - खापरी ,तवे से मोटी रोटी पलटने के लिए प्रयुक्त लोहे का उपकरण जिसका एक सिरा नुकीला और दूसरा चौड़ा और चपटा होता है।
 *संकलन* -श्री सुताराम छेरके रिधोरा, परासिया, छिंदवाड़ा।
 *आपका "सुखवाड़ा" ई-दैनिक और मासिक भारत।*

भूले-बिसरे शब्द* 002

*भूले-बिसरे शब्द* 
*मुचका* - फसल में डौरा चलाते समय फसल खाने से बचाने हेतु बैलों के मुंह पर बांधा जाने वाला रस्सी से बुना मुंह के आकार का सुरक्षा कवच जैसे कोरोना से बचने के लिए इंसानों द्वारा मास्क लगाया जाता है।
 *मछौंडी* -बैलों के सिर पर दोनों सिंगों के बीच बांधे जाने वाली श्रृंगार सामग्री।
 *बेगड़* - बैलों का श्रृंगार करने हेतु सिंगों पर चिपकाने वाला चमकीला रेपर,पेपर ।
*तीफन* - बीजों की बुआई का उपकरण जिसे बैलों की सहायता से चलाया जाता है
 *डवरा* - फसल के बीच से खरपतवार / घास साफ करने का उपकरण जिसे बैलों सहायता से चलाया जाता है
 *फ़साट* - पेड़ों की टहनियों को काटकर तिफन से बुआई के पश्चात बीजों को ढकने के लिए उपयोग किया जाता है।
 *जामभुरबाहि/ खरड़वाही* -  पहली बारिश पर खरपतवार के अंकुरण के बाद साफ करने के लिए की जाने वाली जुताई ।
 *रुंगना* - हल , तिफन , को पकड़ने का हैंडल ।
 *कासरा* - बैलों को नियंत्रित करने वाली रस्सी 
 *एसन* - बैलों को नियंत्रित करने वाली नकेल ।
 *पास* - लोहे की  पतली पट्टी जिसे खरपतवार निकालने व खेत को बखरने  वाले यंत्र के रूप में उपयोग में लाया जाता है ।
 *घोल्लर* - बैलों के गले मे बांधे जाने वाले ध्वनि यंत्र जो बैलों की सुरक्षा या उनकी स्थिति का अनुमान लगाने के काम आता है।
 *टिनमनी* - बैलों के गले मे बांधे जाने वाले ध्वनि यंत्र  जिसकी आवाज  मधुर व कम होती हैऔर 
 बैलों की सुरक्षा या उनकी स्थिति का अनुमान लगाने के काम आती है।
 *चाड़ा* - जिसका उपयोग तिफन में लगाकर बीजो को डालने के लिए किया जाता है। 
 *दातरा/इरा* - हाथों से उपयोग किया जाने वाला औजार काटने नींदने हेतु उपयोगी। 
 *तुतारी* *पिराना* - यह बास की पतली लकड़ी होती है जो बैलों को हांकने के काम आती है।
 *संकलन* - श्री कोमल दंढारेजी
आपका *सुखवाड़ा* ई-दैनिक और मासिक भारत।

*भूले-बिसरे शब्द* *कुएं से जुड़ी शब्दावली व पहेलियां*

*भूले-बिसरे शब्द* 
 *कुएं से जुड़ी शब्दावली व पहेलियां*    

 *ससनी* - कुएं से पानी निकालने हेतु दो खूंटों पर आड़ा रखा मजबूत लकड़ी  का आधार
 *खूंट* -ससनी को आधार देने हेतु जमीन में गहरे गड़े और खड़े दो खूंट
 *परतवाही*- परोता को गोलाकार घुमने हेतु दो छोरों पर लगे लकड़ी के दो आधार जिसमें परोता की कील फंसाई जाती है।
*परोता* - मोट की सोंड की रस्सी जिसपर चलकर पानी निकालने हेतु बनी गोल सिलेंडर नुमा लकड़ी की आकृति।
*चका* - लकड़ी का गोल चका जिसपर मोट का एट चलकर मोट से पानी निकालने के लिए प्रयुक्त।
 *तोरनी* - ससनी के बीचों-बीच लगे लकड़ी के लगभग एक डेढ़ फीट के दो आधार जिनके ऊपरी छोर पर चके को फंसाने हेतु छेद होते हैं।
 *कील* - चका और परोता के दोनों ओर लगी लोहे की मजबूत राड जिनके सहारे वे तोरनी और परतवाही से जुड़कर गोलकार घुमते हैं।
*समदूर* - एट से समान दूरी पर चलने वाली  मोटी की सोंड को थामी रस्सी।
*मोट* - कुएं से पानी निकालने वाला चमड़े या टीन चादर का बना गोलाकार कंटेनर।
*डांड* - पानी निकासी के लिए खेत में बनी नाली।
*लांघी* - पत्थरों की सहायता से बना ऊंचा अवरोधक।
*जूपना* - बैलों को जोतने के लिए प्रयुक्त मोटी रस्सी।
 *जोत* -  बैलों को नियंत्रित करने हेतु जुवाड़े के दोनों छोर पर बंधी  बैलों के गले में बांधी जाने वाली रस्सी (जोत)।
 *थारला* - ढोर -जानवरों को पानी पिलाने के लिए बनाई गई चौड़ी,गहरी और ऊंची नाली जिसे जल संग्रहन हेतु समय समय पर खोला व बांधा जा सके। 
 *धाव* - मोट से पानी निकालने हेतु बैलों को आगे पीछे चलने के लिए प्रयुक्त ढलान युक्त स्थान।
 *डोहन* - लगभग एक हाथ चौड़ी और तीन हाथ लम्बी लकड़ी की उथली नाली जिसपर सोंड से आसानी से पानी उड़ेला जा सके। 
 *कोंड* - मोट को लटकाने के लिए प्रयुक्त मजबूत गोलाकार रिंग।
 *नथनी* - सोंड के एक छोर पर चार छेदों में लगी रस्सी  जो समदूर से जुड़ती है।
*कुएं से जुड़ी कुछ पहेलियां* 
१. इत सी जाय  उगी मुगी,उत सी आवय गाल फुगी।
२. सर सपट गप गाय, तीन मुण्ड दस पाय।
आठ आटानी,बारा बेनी,दो तोरनी,चार चौकड्या।
३.सर सराटा ऊपर कांटा,जी नी चिह्ने,ओको बाप मराठा।

 *आपका सुखवाड़ा ई-दैनिक और मासिक भारत।*

*भूले-बिसरे शब्द** 001


बोली -भाषा के पुराने व अप्रचलित शब्द मरते जाते हैं और नए शब्द जगह भी बनाते जाते हैं। कुछ मृत या मरनासन्न शब्द पाठकों से साझा किए जा रहे हैं-

*लिलपी*-प्रथम बारिश के बाद अंकुराया  या ऊगा चारा (हरा घास-फूस), गर्मी भर सूखा घास खाने के कारण ऊब चुके जानवर  जिसे चरने हेतु ललचाते और चाव से चरते हैं।
 *सौकास*- सुविधाजनक ढंग से, आराम से।
 *ढेरा* -  धन के आकार की लकड़ी से बनी तकली जैसी आकृति जिसे घुमाकर उसपर सन,अम्बाड़ी के लम्बे रेशों को रस्सी बुनने हेतु आटा जाता है, जिससे रस्सी तैयार की जाती है।  
 *पानुड़* -गन्ने के सूखे पत्ते। 
 *धाव*- कुएं से मोट द्वारा बैलों की सहायता से पानी निकालने हेतु बैलों के आगे-पीछे चलने हेतु बनाई गई विशेष ढलान युक्त जगह,राह।
 *सुखवाड़ा* -* सुखद-मंगलमय कामना और समाचार।
*अगवानी*- आगे बढ़कर स्वागत- अभिनंदन करना।
*बारात झेलना* - गांव में बारात के आगमन पर अनौपचारिक रूप से अतिथियों के बैठने व पानी पिलाने की व्यवस्था करना।
*जनवासा* - विवाह के पूर्व बारातियों को रुकवाने की व्यवस्था , भोजनोपरान्त बाराती जहां विश्राम कर सकें। 
*उतारा* - प्रथम बारिश के बाद खेत में ऊगा हुआ निंदा या खरपतवार।


 *आपका "सुखवाड़ा" ई-दैनिक और मासिक भारत।*

पानी जीव की कहानी

पानी जीव की कहानी

पानी जीव की कहानी
पानी जीव ला आधार
करम को भागिरथ
गंगा पुंजस पीतर.   ।१।

पानी जीव की कहानी
दूध माऊली को सार
बहे नस नस मिन्
रगत को उपकार. ।२।

पानी जीव की कहानी
वोलऽ माती ला पाझर
वटी हिवरं खन की
भयी पेट ला भाकर. ।३।

पानी जीव की कहानी
झलारस मुंडा पर
सूर्व्य चंदर को नातो
नाव गोंद्यो आंग पर. ।४।

पानी जीव की कहानी
करे चर्रऽ  चर्रऽ धार
गुन हिरा को दिखाडे
जिंदगी की तलवार. ।५।

पानी जीव की कहानी
वको अगास मऽ घर
माया माती पर वोकी
झलकावे समिंदर. ।६।

पानी जीव की कहानी
वकी भावना अपार
मन टिचकेच जरा
बहे पापनी को पार. ।७।

पानी जीव की कहानी
सुख दुख ला हाजर
चव मीठ की हिरदा
भाव बोवस साखर. ।८।

पानी जीव की कहानी
दिसे स्यांत खालऽ वर
समायकन् साराला
धरी ताकत वज्जर.  ।९।

पानी जीव की कहानी
इंद्रधनुस फुलोर
आस बादल की झरे
नाचवस मनमोर  ।१०।

पानी जीव की कहानी
संगऽ जिंदगानी भर
सऱ्यो सरन को दाह
जीव पानी कोच घर. ।११।

-- सुरेश महादेवराव देशमुख , नागपूर

Monday 8 June 2020

🌧️ डोरा मिरुग सपन 🌧️

🌧️ डोरा मिरुग सपन 🌧️

नातो भूई आभार को
रहे माय बाप वानी
जीव जंतू को आसरो
वोकनच जिंदगानी

        पंचमहाभूत सार
        घरं दारं आबादानी
        भेदे तमाम असार
        भारे तन मन पानी

डोरा मिरुग सपन
बहे जीवन कहानी
झड भावना की लागी
मन आये ना बरानी

        भूई कुस उजयेन
        नवो जीव धरे बानी
        ढेलो माती को धकाडे
        दुय हात जोडस्यानी

ठेंब ठेंब अमरित
तिस समिंदर वानी
उबडाये हिरदाला
असो मिरुग गा दानी

©️✒ सुरेश महादेवराव
            देशमुख , नागपूर

🥦 झाड पेड गनगोत 🥦

🥦 झाड पेड गनगोत 🥦

आयी बड सावितरी
झाड कुडी की गुफन
नातो जलम जलम
बड देव को पूंजन

       सूत पिवरो गुंडारे
       साजे नाता को बंधन
       बाजे पायपट्टी पाय ऽ
       आंग ऽ मह्यके चंदन

झाड पेड गनगोत
रह्ये सिवार आंगन
फेरा माऱ्या सातडाव
हरख्यास देवांगन

        मुरी अगास मऽ धरे
        जीव धरितरी दान
        झाड पाखरू कऽ संगऽ 
        नाता गोताला आंदन

चाले जलम जलम
असी जनुक तिफन
नाद अनाहत गुंजे
भिर् भिरस गोफन

©️✒ सुरेश महादेवराव
           देशमुख , नागपूर

Monday 25 May 2020

भुजलिया (पंवारो/भोयर/भोयर पंवार का मुख्य त्योहार)

*भुजलिया (पंवारो/भोयर/भोयर पंवार का मुख्य त्योहार)*


सावन माह की पूर्णिमा के अगले दिन बनाया जाने वाला पर्व.....
नागपंचमी अगले दिन गेहूं के दानों को बांस की टोकरी में बोया जाता हैं बेटी के टोकरी व एक टोकरी खेत की, और एक टोकरी देव के लिए बोई जाती हैं


अगले 10 दिनों तक बोई गई टोकरी को अंधेरे में रखा जाता हैं एवम बोवाई की उगाई व स्वरूप देख फसल का अंदाजा लगाया जाता है


रक्षाबंधन के दिन चौक पुरकर पटे पर भुजलिया को रख पूजा की जाती हैं रक्षाबन्धन के अगले दिन भुजलिया को पुजा करके किसी, नदी या किसी जल स्त्रोत पर उजा लिया जाता हैं 


भुजलिया को सबसे पहले समीप के किसी मंदिर में चढ़ाया जाता है उसके बाद आसपास व करीबी रिश्तेदार को दिया जाता है जिसमे बड़े छोटो को आशीर्वाद देते हैं भुजलिया पर्व पर एक दुसरो से मिल परस्पर मेल बढ़ाते हैं


भुजलिया उजाना- बेटी की शादी हो जाने पर प्रथम भुजलिया पर भुजलिया उजा दिए जाते हैं जिसमे बॉस की खाली 5 या 7 या अधिक टोकरी मामा मामी, चाचा चाची , बहन, मौसी, बुआ करीबी रिश्तेदार को दी जाती हैं आखिर में एक टोकरी को ससुराल में ले जाया जाता है


इस तरह बेटी के शादी के बाद भुजलिया उजा दिए जाते है एवम अब अगले साल से बेटी के नाम से भुजलिया बोया नही जाते।


भुजलिया उजना यह कि अब बेटी को ससुराल को समर्पित कर दिया गया हैं मा बाप का कर्तव्य बडे लाड़ प्यार को बड़ा कर पड़ना लिखना अब पूरा हुआ अब ससुराल पक्ष में बेटी अपने कर्तव्यों का निर्वाह करे


*लेख - राजेश बारंगे पंवार*
*संशोधन आमंत्रित*


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Wednesday 13 May 2020

उत्तराखण्ड का परमार वंश या गढ़वाल का पंवार वंश

उत्तराखण्ड का परमार वंश या गढ़वाल का पंवार वंश
➤ गढ़वाल में 54 गढ़ थे। इन 54 गढ़ों पर खश ठकुरियों का अधिकार था। इन गढ़ों में सबसे प्रमुख गढ़ भानू प्रताप द्वारा बसाया गया चाँदपुर गढ़ी था। वर्तमान में सभी गढ़ों में बचा एक मात्र गढ़ चाँदपुर गढ़ी (चमोली) में स्थित है।
➤ गुजरात के राजा कनकपाल ने 888 ई. में गढ़वाल में पंवार वंश की नींव रखी। कनकपाल ने चाँदपुर गढ़ी को अपनी राजधानी बनायी। गढ़वाल पर कुल 60 पवार राजाओं ने शासन किया। पंवार वंश के 34 वें शासक राजा जगतपाल ऐसे प्रथम पंवार शासक हैं जिनकी जानकारी अभिलेख से मिलती है। पंवार वंश के वास्तविक संस्थापक 37 वे शासक अजयपाल को माना जाता है। अजयपाल ने सभी गढ़ों को जीतकर गढ़वाल की सीमा का निर्धारण किया।
➤ अजयपाल ने 1512 में अपनी राजधानी देवलगढ़ (पौढ़ी) स्थानांतरित की। 1517 में अजयपाल ने अलकनन्दा के तट पर स्थित श्रीपुर नामक स्थान की नगर के रूप में नींव रखके उसे अपनी राजधानी बनाया। चाँदपुरगढ़ी-देवलगढ़-श्रीनगर-टिहरी-प्रतापनगर-किर्तीनगर-नरेन्द्रनगर
➤इस वंश के शासक बलभद्रपाल ने सर्वप्रथम शाह की उपाधि प्राप्त की थी। बलभद्रपाल को शाह की उपाधि अकबर ने दी थी। बलभद्र के पश्चात मानशाह शासक बने। मानशाह ने प्रथम गढ़वाली ग्रन्थ मानोदय काव्य की रचना की थी। मानशाह ने कुमाऊँ राजा लक्ष्मी चंद को सात बार हराया था। मानशाह के बाद महीपतिशाह मुख्य शासक हुये। महीपतिशाह के प्रमुख सेनापति माधोसिंह भंडारी थे। माधोसिंह भंडारी को गर्भभंजक कहा जाता है।
➤महीपतिशाह की मृत्यु के पश्चात उनके 7 वर्षीय पुत्र पृथ्वीपति शाह को गढ़वाल का शासक घोषित किया गया। पृथ्वीपति शाह को शासक घोषित कर रानी कर्णावती उनकी संरक्षिता बनी। रानी कर्णावती के समय मुगल सेनापति नवाजद खाँ ने दून क्षेत्र पर आक्रमण किया । रानी कर्णावती ने मुगलों को पराजित कर उनकी सेना के नाक कान कटवा दिये। मुगल सेना के नाक कान काटने के कारण रानी कर्णावती नाककटी रानी कहलायी। मुगल सेना के नाक कान काटने कीक घटना का वर्णन निकोलस मनूची ने हिस्ट्री ऑफ मुगल में किया है। पृथ्वीपति शाह के समय मुगल शहजादा सुलेमान शिकोह (दारा शिकोह का पुत्र) ने गढ़वाल में शरण ली। पृथ्वीपति शाह के पुत्र मेदनीशाह ने सुलेमान शिकोह को जयसिंह को सौंप दिया।
➤ सुलेमान शिकोह को जयसिंह को सौंपने को कारण पृथ्वीपति शाह ने अपने पोते फत्तेपतिशाह को अपना उत्तराधिकारी बनाया। फत्तेपतिशाह के दरबार में नौरत्न मौजूद थे। फत्तेपतिशाह के शासन काल को साहित्य एंव संस्कृति का काल कहा जाता है। फत्तेपतिशाह के समय 1676 में गुरूराम राय श्रीनगर आये।
गुरूरामराय को फत्तेपतिशाह से दून क्षेत्र प्राप्त हुआ जहाँ डेरा डानने के कारण इस स्थान को डेरादून या देहरादून कहा गया।
➤ गुरू रामराय ने धामवाला देहरादून में मुगलशैली पर झण्डा दरबार साहिब गुरूद्वारा बनवाया। गुरूरामराय ने उदासीन पंथ की स्थापना की थी। प्रदीप शाह के समय उनके कवि मेधाकर ने प्रदीपरामायण नामक ग्रन्थ की रचना की। गोरखाओं ने प्रद्युम्न शाह के समय 1791 में गढ़ावाल पर प्रथम आक्रमण किया जिसमें वे असफल रहे । 1804 में गोरखाओं और प्रद्युम्न शाह के मध्य खुड़बुड़ा का युद्ध हुआ जिसमें प्रद्युम्न शाह वीरगति को प्राप्त हो गये। 1804 से 1815 का समय गढ़वाल में गोरख्याड़ी काल रहा।
इसके बाद गढ़वाल नरेश ने अपनी राजधानी टिहरी गढ़वाल में स्थापित की और भारत में विलय के बाद टिहरी राज्य को उत्तर प्रदेश का एक जिला बना दिया गया।

Source - internet

*जितेन्द्र ठाकरे* *+91 9754628304* *बैनगंगा क्षत्रिय पवार समाज भोपाल*

*पवारी कविता शीर्षक*
*"गांव में देखो पोवारी शान"*
भाऊ गा गांव माँ देखो पोवारी शान।
गुडुर/घोड़ो की खासर जासे सनान।
नवोसाल मा तिर सकरात को मौका आयो- 2
अना नवती बहु गिन बाट सेत बान ।
अगा गांव माँ देखो पवारी शान।
जब टूरा अना टुरी देखन ला जासेती ,
जेव सेती सुवारी न भटा भात को पकवान।
अगा गांव में देखो पवारी शान।
बिह्या बरात माँ जासेती त जीव(मन)
भरके देसेत दान,
अना आपरी टुरी को दहेज़ में देसेति गऊ अना अन्न को दान।
अगा गांव में देखो पवारी शान।
अखाडी को तिहार(त्यौहार) आयो, बुलया भज्या कुसुम का बनीन पकवान,
अना नवती बहु,आरती धर धर
माता माय जवार जासेती,
अना नावन ना कोटवारींन ला बाट सेती दान।
अग गांव माँ देख पवारी शान।
रक्षाबंधन में आपरो भाऊ साठी, राखी धर धर आओ सेती।
अना बहिनी ,भाऊ को कलाई पर बांध सेती रक्षाबंधन महान।
गांव माँ देखो पवारी शान।
गांव माँ देखो पवारी शान।
गांव माँ देखो पवारी शान।
*जितेन्द्र ठाकरे*
*+91 9754628304*
*बैनगंगा क्षत्रिय पवार समाज भोपाल*
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*संशोधन आमंत्रित***
आज की नयी पीढ़ी और पढ़ो लिखो लोगो को ये शायद महत्वपूर्ण न लगे पँर हम इन्हें सहेज कर रखने में लगे है आपके सहयोग की आशा है।
*ऐसी कुछ ही वंश / जाति है जिनकी खुद की अपनी बोली, संस्कृति है।*
आओ इसे पवार जनमानस की भाषा बनाये। पवारी भोयरी को बढ़ाये
पवारी भोयरी भाषा के लेख पत्र पुस्तिकाएं कविता आदि आप मुझे मेल करिये या whatsapp पर सेंड कीजिये

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*_एडमिन पैनल_*
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अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय !!

अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय !!
उज्जैन और धार, पँवार(परमार) वंशियो की प्राचीन राजधानी थी। राजा महलकदेव पँवार मालवा के अंतिम शाशक थे जिनकी १३०५ मे अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति आईनुल मुल्क मुल्तानी ने हत्या कर दी और इसके बाद वंहा रह रहे लाखो पँवार भाइयो के लिए जीवन का संकट उत्पन्न हो गया था । यही से ये लोग देश के कोने-कोने में जाकर सुरक्षित क्षेत्रों में चले गए।
सम्राट भोज के भतीजे राजा लक्ष्मणदेव पँवार और राजा जगदेव पँवार ने विदर्भ के क्षेत्रों पर शाशन किया था और मालवा पर मुस्लिमो के आक्रमण के समय इस क्षेत्र पर पँवारो का शाशन था इसीलिए यह क्षेत्र पँवारो के लिए सबसे सुरक्षित क्षेत्र था और हमारे लाखो पँवार भाई नगरधन(नागपुर) के आसपास के क्षेत्रों में आकर बस गए जिन्हे भोयर पवार कहा गया।
कुछ पँवारो के जथ्थे पुना के आसपास जाकर बसे। कालांतर में छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वारा हिन्दुशाही मराठा वंश की स्थापना की जिससे वापस शक्तिशाली हिन्दू मराठा वंश का जन्म हुआ और इसके विस्तार में हमारे पँवार योद्धाओं ने पूरा सहयोग दिया जिससे हमें पुना और आसपास के कई क्षेत्रों में सरदार बनाकर रियासतें दी गई। सुपे, फाल्टन आदि प्रसिद्ध पवार रियासते हुयी और पँवारो का विस्तार कोकण, सतारा तक हो गया। यंहा निम्बालकर, जगदाले,विश्वासराव,दळवी, गुढेकर ,वाघ, बागवे, जगदाळे, धारराव, घोसाळकर, बने, धनावडे, सावंत ( पटेल ), राऊळ, पंडित, तळवटकर आदि पँवारो के उपनाम से प्रसिद्ध घराने हुए। ये सभी मराठा कुल में शामिल होकर उनके साथ हर युद्ध में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और शिवाजी महाराज के अखंड हिंदु राष्ट्र के स्वप्न को पूरा करने के लिए खूब लड़ाईया लड़ी।
विदर्भ के पँवार भाइयों ने भी कई युद्धों में मराठा राजाओ का साथ दिया जिससे भंडारा,गोंदिया और बालाघाट जिलों की जागीरदारी/पटेली प्राप्त हुयी और पँवार भाइयों को अब कृषि के लिए काफी जमीन मिल गयी और वे कुशल कृषक बने।
धीरे-धीरे मराठाओं की शक्तियाँ बढ़ती गयी और दिल्ली हिन्दुस्तान के अधिकांश क्षेत्रों पर मराठाओं का शाशन हो गया। धार और देवास की रियासतें वापस पँवार वंशियो को प्राप्त हुयी। इस प्रकार पँवार वंश मराठाओं का हिस्सा बन चूका था और सम्राट विक्रमादित्य और राजा भोज के वंशजो को अपने पुराने क्षेत्र प्राप्त हुए।
मालवा से विस्थापित पँवारो की कुछ शाखाये गुजरात, बिहार, उत्तराखंड,पंजाब और राजस्थान जाकर बस गए। राजस्थान में ८वी से १०वी शदी के आसपास कई पँवार(परमार) रियासते थी जिनके वंशज कालांतर में राजपूत पँवार कहलायें।
उज्जैनी परमार, गढ़वाली पँवार, मूली परमार, भोयर पवार, मराठा पवार, धार पवार, वैनगंगा पँवार आदि सभी शाखाएं अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय ही है और आज भी सभी अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए निरंतर देश की एकता और अखंडता में पूरा सहयोग कर रहे है।
हर हर महादेव!! जय महाकाल!!_
जय माँ सच्चियाय गढ़कालिका भवानी!!
जय सम्राट विक्रमादित्य!! जय राजा भोज!!
जय क्षत्रपति शिवाजी महाराज!!
जय अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय!!

Source fb

Friday 1 May 2020

नजरिये


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इंसान अपने नजरिये से ही ऊँचा उठता है
उसकी सोच एक ऐसे नजरिये को विकसित करती है
जिससे वो आगे बढ़ाता है
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विचार गतिशील व भिन्न होते है...
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इसका जीवंत उदाहरण है..
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सब्जी की टोकरी में से हर व्यक्ति सब्जी छाटता है
और मजे की बात है कि
बिक भी पूरी जाती है..!
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राजेश बारंगे पवार
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#राजेश_बारंगे_पवार
सुखवाड़ा अप्रैल 2017 अंक से