पांढरी की ओ माता-माय / पँवारी
पांढरी की ओ माता-माय
मऽ मानू तू हय भोरी।
आओ-आओ माता-माय
करू तोरी बिनती आज की रात
करजो मराअ् घरअ् वास
दिन खऽ लेजो कू-कू को रेला
रात खऽ लेजो सहिर वास।।
पाण्ढरी को रे हनुमान बाबा
मऽ मानू तू हयअ् भोरो
आओ-आओ रे हनुमान बाबा।
करू तोरी बिनती आज की रात
करजो मराअ् घरअ् वास
दिन खऽ लेजो कूक को रेला
रात खऽ लेजो सहिर वास।।
मऽ मानू तू हय भोरी।
आओ-आओ माता-माय
करू तोरी बिनती आज की रात
करजो मराअ् घरअ् वास
दिन खऽ लेजो कू-कू को रेला
रात खऽ लेजो सहिर वास।।
पाण्ढरी को रे हनुमान बाबा
मऽ मानू तू हयअ् भोरो
आओ-आओ रे हनुमान बाबा।
करू तोरी बिनती आज की रात
करजो मराअ् घरअ् वास
दिन खऽ लेजो कूक को रेला
रात खऽ लेजो सहिर वास।।
पँवारी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
Source -http://kavitakosh.org/kk/पांढरी_की_ओ_माता-माय_/_पँवारी
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