# भोयरी संस्कृति - ४ #
* लोकचित्रकला की अनोखी भोयरी संस्कृति *
लोकचित्रकला : तिवार , ब्याह, संस्कार , सुभ घडी पर होन वाली चित्रकारी भोयर समाज मऽ थोडऽबूत फरक सोडकन् येकसारखीच सऽ , मंग वूई महाराष्ट्र का वर्धा - नागपूर जिला रहे या मध्यप्रदेश का बैतूल - छिंदवाडा जिला .
लोकचित्रकला कला कला को आदिम रूप आय. येनऽ लोकचित्रकला मऽ सूर्व्य , चंदर , पीतर , जनावर , पाखरु , बाई , मानुस , भगवान , गाय - बइल , पोटु - बाटू , भाई - बहिन ,कमल , बेल - फूल - पत्ती , भूमिती की आकृती , सस्तिक , नागोबा , हत्ती , घोडो , रथ , पालखी , झाड काहाडकन् अमूर्त ला मूर्त रूप देन को सार्थक प्रयास करना मऽ आवस. लोकचित्र कला का प्रतिक आनऽ मतलब को अभ्यास इ अलग च चिंतन को विस्यय सऽ , जी आज कऽ जुग मऽ जरुरी सऽ . येमकऽ चितरंग का कई रूप सऽ . येक ही चितरंग का लय मतलब निकरस. येनऽ चित्रकला मऽ अनगढ साजरपन आनऽ अनोखोपन सऽ . येनऽ अनगढता कऽ कारन वोमऽ फयलाव ( विस्तार ) की अनन्त सम्भावना रव्हस. या कला हर बार नवी लागस पर येमऽ कई असा तत्व बी रव्हस जी मूल स्वरूप ला बनायकन् राखस. येनऽ कला को समग्र नजरियो , या बडी बात सऽ . या कला येकलऽ मानुस साठी नही त् समाज साठी रव्हस , जी सहजीवन की प्रेरना देस. येमऽ सहज अभिव्यक्ती , जन - जन की आस्था आनऽ सुखदुख की कथा रव्हस. या कला सिरफ सुभसकुन , उपरी उपरी की सुन्दरता च नही रव्हस तऽ वोमऽ गह्यरो साजरपन , सीख , प्रेरना रव्हस .
चितरंग / चऊक काहाडन की जागा : चवरी जवर की दिवाल , चवरी आघऽ की जागा , दरुजा जवर की दिवाल , दरुजा जवर की जमीन , दाठ्ठो , तुरसी जवर की जागा , आंगनो , ज्यान पूंजा मांडी वा जागा , चवरंग कऽ खलतऽ की जागा , बोहला की जागा , मोह्यतूर की डेर - माथनी जवर की जागा , मोह्यतूर की जागा , दिवा - कलस कऽ भोवताल ....
चितरंग काहाडन को , चऊक पूरन को सामान / साधन : गेरु , चुनो , गहू को पीठ ( आटो ) , तूप , हरद , चऊर को पीठ , रांगोरी , कुंभार को रंग , कुची ( बरस ) , रु लपेटी आगकाडी , साच्यो , ठप्पो , आपला बोट ( उंगली ) ना ...
बेगरऽ बेगरऽ परसंग , सन तिवार ला बेगरो बेगरो रंग को माध्यम आनऽ डिझाईन का चितरंग काहाडन की / चऊक पूरन की भोयरी परम्परा आनऽ संस्कृति सऽ .
१. जीवती : चऊर कऽ पीठ को रंग बनायकन् चवरी / दिवरा कऽ जवर की दिवाल पर डवरो - डुपन , बखर , तिफन ,नागर बंडी असा खेती कऽ काम का साधन को चितरंग काहाडस . वोकऽ संगच बइल जोडी ,गडी मानुसना को बी चितरंग काहाडस . वोनऽ चितरंग ला चवखुटी रेस काहाडकन् फ्रेम बनावस . हरद - कुकू - अकसिद , पिवरं धागा कन् पूंजा करस.
२. नागपंचमी : नागपंचमी ला चवरी जवर आनऽ दरुजा कऽ दुय बाजू कितऽ तूप येनऽ माध्यम को बापर करकन् नागोबा , बिचू का चितरंग काहाडस / लिखस . हरद - कुकू , अकसिद लगायकन् उनकी पूंजा करस .
३. पोहती / पोयती ( रक्षाबंधन ) : पोयती कऽ दिन कुंभारी रंग बापरकन् बहुड्डो लेकन पोटी , पालखी , तलवार लेकन घोडापर बस्या भाईना , हत्ती असा दिवाल भर चितरंग काहाडस . उनकी बी हरद - कुकू , अकसिद लगायकन् पूंजा करस.
४. गोकुळाष्टमी / जन्माष्टमी : येनऽ दिन तूप कन् चितरंग काहाडस. भगवान किस्नं , गोप - गोपी , गवळनना , गाय - बासरुना असो गोकुळ को चितरंग काहाडस . येला पन् चवखुटी बाॅर्डर काहाडस . आन् इनकी पूंजा करस.
५. पोरो ( पोळा ) : पोरा कऽ दिन गेरु कन् जू ला रंगायकन् दाठ्ठा मऽ धरस. चवरी जवर कऽ दिवाल पर जेतरा भाईना होयेन उनका हरद कन् चितरंग काहाडस . आन् वोकी बी पूंजा करस.
६. सराध ( श्राध्द ) : सराध मऽ चौथ , पंचमी , सप्तमी असो जेनऽ दिन जमेन वोनऽ दिन कागुर डावस . पीठ कन् घर मऽ आवनीवाला पीतर का पायना काहाडस . नवमी ला सवासिन पीतर की पूंजा करस.
७ . अखरपक ( सर्वपित्री दर्श अमावास्या ) : अखरपक कऽ दिन पीठ कन् पीतर का घर कऽ बाहिर जातानी का पायना मांडस . दरुजा ला तूप लगावस . पीठ कनच जमीनपर पीतरना काहाडस . वोकऽ वरतऽ दिवाल मऽ सलाक / सरुता मऽ सवारी - बडो टोचकन् धरस . वोकऽ खलतऽ निवो धरस . बाद मऽ सवारी - बडा परीन तूप सोडस जी ठेंब ठेंब निवा पर पडस . येला पीतर की स्यिदोरी कव्हस.
८. दिवारी / गायगोंदन : गायगोंदन कऽ दिन दुय हात की मुठना गेरु मऽ भिजायकन् आंगना मऽ वोका ठप्पा मारस. वुई गाय कऽ खुर वानी दिसस .
९ . रथसप्तमी : रथसप्तमी पुस मह्यनाकऽ हर इतवार की सूर्व्यपूंजा होन कऽ बाद मऽ आवस . आपलो जीवन सूर्व्याकनच सऽ . येनऽ दिन आंगना मऽ तुरसी जवर रांगोरी कन् रथ पर सवार सूर्व्यदेव को चितरंग काहाडस. पिडा पर वोकऽ नाव्हन धोवन साठी सारो सामान , आयनो , तेल , फनी - कंगवो धरस . वहानच गवरी पर गाडगा मऽ उतू जायेन असो खीर को निवद / परसाद बनावस . हरद - कुकू , अकसिद कन् सूर्व्यदेव की पूंजा करस .
( स्रोत : सौ . पार्वतीबाई महादेवराव देशमुख )
लेखक : सुरेश महादेवराव देशमुख , नागपूर मो. 7066911969
Thank you Rajesh da
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