Friday, 25 July 2025

पंवार समाज की परंपराएं: गोत्र, बरा वर्ग और विवाह के शास्त्रीय नियम

 


🔍 तथ्यात्मक विश्लेषण (Analysis):

तालिका की संरचना:

तालिका में चार मुख्य स्तंभ हैं:

  1. **बरग ** – समाज में गोत्रों को अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है जैसे: गरुड़, बिल्ली, सिंह, श्वान (कुत्ता), सर्प, मूषक (चूहा), हिरण, मेंढा आदि।

  2. गोत्र का पहला अक्षर – यह बताया गया है कि कौन–कौन से वर्ण (अक्षर) किस वर्ग (बरा) में आते हैं।

  3. शत्रु – किस वर्ग के साथ विवाह नहीं होना चाहिए, अर्थात सामाजिक वर्जनाएं।

  4. मित्र – किन वर्गों के बीच विवाह किया जा सकता है।

🧠 उदाहरण के लिए:

  • यदि किसी व्यक्ति का गोत्र "अ" से शुरू होता है, तो वह "गरुड़" वर्ग में आता है।
    👉 उसका विवाह "सर्प" वर्ग से नहीं होना चाहिए (शत्रु), लेकिन बाकी सभी वर्गों से विवाह संभव है (मित्र)

  • "बिल्ली" वर्ग में आने वाले (क, ख, ग, घ, ड)
    👉 "शत्रु" वर्ग है: कुत्ता,
    👉 विवाह बाकी वर्गों से हो सकता है।

📜 सामाजिक परंपरा पर विशेष निर्देश (चित्र के नीचे का भाग):

  • कुलदेवता/कुलदेवी की पूजा की महत्ता बताई गई है।

  • कहा गया है कि परंपराओं को आधुनिकता के नाम पर त्यागना ठीक नहीं

  • पंवारों की कुलदेवी माँ गढ़कालिका (उज्जैन) को बताया गया है।

  • विवाह के समय कुलदेवता की मूर्ति या फोटो घर में रखकर पूजा करें

  • सप्तपदी (अग्नि के साथ 7 फेरे) और विवाह वेदिका के नियमों का पालन करने पर ही विवाह को पूर्ण माना गया है।



क्षत्रिय पंवार समाज INDIA
राजेश बारंगे पंवार, जितेन्द्र बघेल, सूर्यकांत नागर, दीपक भगत

गोत्र एवं बरग 

बरग गोत्र का पहला अक्षरशत्रुमित्र
गरुड़अ, ई, उ, ए, ऊसर्पबाकी सभी मित्र
बिल्लीक ख ग घ डकुत्ताबाकी सभी मित्र
सिंहच छ ज झहिरण और मेंढाबाकी सभी मित्र
श्वान (कुत्ता)ट ठ ड ढ णबिल्लीबाकी सभी मित्र
सर्पत थ द ध नगरुड़, मूषक (चूहा)बाकी सभी मित्र
मूषक (चूहा)प फ ब भ मबिल्ली और सर्पबाकी सभी मित्र
हिरणय र ल व शसिंहबाकी सभी मित्र
मेंढास ह षसिंहबाकी सभी मित्र

विवाह में सामाजिक रीति रिवाजों को नहीं भूलना चाहिए, अपने कुल के पितरों याने डाबली के देव का पूजन, कुल देवता कुल देवी का पूजन अवश्य करना चाहिए। रिवाजों के विरुद्ध आधुनिकता में बहना ठीक नहीं होता। पंवारों की कुलदेवी माँ गढ़कालिका है, काली माता की मूर्ति या फोटो घर में रखकर पूजन करें। विवाह वेदिक पद्धति से सप्तपदी से करें जिसमें अग्नि के सात फेरे, सप्तपदी, विवाह करायें तभी विवाह पूर्ण होगा। ऐसा हमारा विनम्र सुझाव है बाकि मानना आपके विवेक पर निर्भर है।