पवार-कूरावलि नामदेवराव सोनवाने अमरावती
(भूतपूर्व महासचिव, पदार युवक सं.
नागपुर)
पवार यह वह जाति है जिसे
पुआर, पंवार, पोवार, भोयर-पवार आदि समय
परिवर्तन के साथ अनेक पर्यायी नामों से संबोधित किया गया। प्राचीन काल में प्रमार
से पवार नामान्तर होने की संभावना कुछ इतिहासकारों ने बताई है। सुर्यवंशी तथा
चंद्रवंशी क्षत्रियों का परशुराम द्वारा संहार करने के पश्चात भारतवर्ष पूर्णतया
असुरक्षित हो चुका था। इन परिस्थितियों में ऋषि, महामुनियोंने भय से छुपे
हुये क्षत्रियों को इकठ्ठा कर माऊंट आबू पर महायज्ञ किया एवम् अग्नि पूजा तथा
मंत्रोपचार से क्षत्रियों की नई शक्ति उमारी। उन्हे अग्निवंशी क्षत्रिय कहा गया ।
इन्हे चार शाखाओं में विभक्त किया गया। यह चार शाखायें है पंवार, चौहान, सोलंकी तथा परिहार । पवार
प्रारम्भ में सम्पूर्ण भारतवर्ष में फैले हुये थे तथा सत्ताधारी थे। बाद में धार, देवास तया सभिपस्त
राजस्थानी इलाके में धनी आबादि में बस गये। चक्रति सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य से
हर्षवर्चन / अशोक तक तथा प्रथम विक्रमादित्य से वर्तमान धार-देवास के राजपरिवारों
तक अनेक राजा हुये। कुछ नृपों ने खासकर विक्रमादित्य, भोजदेव, मुंजदेव, जगदेव आदि विशाल
लोकप्रियता जित की थी। कहते है जगदेव ने नगरधन में सर्वप्रथम सुभेदार का पद
सम्हाला था तथा बाद में अपने आप को राजा घोषित कर तत्कालिन नादिनिवर्धन नामक इस
नगरी को राजधानी बनाई पी। इसी दौरान भारी संख्या में पवार विदर्भ के ग्रामों में भेज उन्हे
ग्राम प्रमुख बनाया था। बाद में महम्मद घोरी के अतिक्रानों से तंग आकर भारी मात्रा
में पवार इस क्षेत्र म आये। इधर आकर पवार दो खेमों में क्रमशः पवार (पंवार या
पोवार) एवम् भोयर पवार में बट गये। पवार कुल ३६ कूरों (उपनाम / आडनाव) के है तथा
भोयर पवार ७२ कूरों के हैं। कूरों की गोत्र जैसी परिधि है अतः एक ही कूर के
परिवारों के बीच लड़का- लड़की व्याही नही जाती। पटेल, पवार, पंवार, देशमुख, पाटील, पारस्कर, सागर, वडस्कर तथा इसी तरह के
कूर बाद में धारण किये गये हैं। कुछ कूरों का कालचक्र के अनुरूप अपभ्रंश हुआ है।
कुछ कूरों को जानबूझकर तोड़-मरोड़ कर बदल दिया गया है। सर्व साधारण जानकारी हेतु
करावलि प्रस्तुत हैं।
-: कूरावली:-
अंबुले, आगरे, ओंकार, , एडे (पंवार / एड़ेकर) कटरे, (शेंडे/देशमुख),
कडवे, करदाते (दाते), कसारे (कसई/केसाई), कसलीकर, करंजकर, कालभूत/कालभोर, कामडी, किनकर, कुईके, कोरडे (कोडले), कोल्हे,
खवसे (खौसी), खपरे (खापरे), खसारे, खरपुसे/ खुसखुसे,
गौतम, गाडगे, गाकरे, गाडरे, गधडे (काटोले) गिन्हाळे (गि-हारे), गोहेते (गोहिते, गोयते), गोरे ,दुखी, दुर्वे, घागरे, घोंडी, चिकणे ( चकनार / चिकाणे /
पवार) , चोपडे चौधरी, चव्हान, जैतवार टेंभरे, टोपले,
ठवळे, ठाकरे (ठाकुर),
डहारे (पवार), डिगरसे, (दिगरसे), डोबले, डोंगरे/ डोंगरदिये, डाला, देशमुख
ढोले, ढोबाळे, (ढोबळे / ढबाले), , डंढारे
तुरकर (पंवार),
देवासे , देशमुख,
धारपुरे, धोटे, धंडारे (पवार)
बैरागडे, बघेले, बिसेन, (बिसने) बोपचे,
बन्नगरे, (बडनागरे, नागर). बरखेड़े, बारंगे (बारंगा), बैंगणे, बोवाडे, (बुआडे), बोबडे
बारबोहरे,
पटले (पटेल/पाटील,) (देशमुख) परिहार पुंड
(पुंडे) पारधी (पारधे / पारसकर) पराडकर, पठाड़े, पाठे, पिंजारे, (पिंजरकर), पेंधे, फरकाड़े ,फरिदा,
भुईन्हार, भादे, भुसारी, भैरम, (कालभैरव), भोयार, भगत (भक्तवर्ती), भोंगडे,
माटे, मानमोडे मुन्ने,
रमधम, राहांगडाले, राणे, रिनायत, राऊत, (रावत) (रणझार, रणदिया, रहेमत), रबड़े
लाडले , लबाड ,लोखंडे, राऊत,
शरणागत, शेरके,
सोनवाने, सहारे, सवाई, सरोदे हरिणखेडे, हनवत, हजारे, हिंगवे, क्षिरसागर (सागर),
नाड़ीतोड़,
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Justification
क्षत्रिय पवार (भोयर पवार) जाति के गोत्र एवं उनके अपभ्रंश
भोयर
पवार, जिन्हें भोयर या पवार के नाम से भी जाना जाता है, एक क्षत्रिय (राजपूत) जाति है। हिंदू वैदिक वर्ण व्यवस्था के अनुसार, यह जाति क्षत्रिय
वर्ण में आती है। ये विशुद्ध रूप से मालवा के राजपूतों के वंशज हैं, जो राजस्थान, गुजरात,
सिंध और भारत के अन्य क्षेत्रों से प्रवास करके मालवा में आकर बसे थे। इनका मुख्य निवास
मध्य प्रदेश के बैतूल, छिंदवाड़ा और पांढुर्णा जिलों में, तथा महाराष्ट्र के वर्धा
और नागपुर जिलों में है। 16वीं से 18वीं शताब्दी के दौरान, ये मालवा से बैतूल की ओर
प्रवासित हुए और वहाँ से धीरे-धीरे छिंदवाड़ा, पांढुर्णा और वर्धा जिलों में जाकर बस
गए। भोयर पवार जाति में कोई उपजाति नहीं है, लेकिन इनमें 72 गोत्र हैं, जिनके भीतर
ही ये विवाह करते हैं।
भोयर पवारों के
गोत्र इस प्रकार हैं:
1. बारंगिया /
बारंग्या / बारंगा / बारंगे
2. बागवान /
भोयर / भुईहार
3. बोगाना /
बोगा / बैंगने
4. बरखेड़िया
/ बरखाड्या / बरखेडे / बरखाडे / वरखाडे
5. बारबुहारा
/ बारबुहारे
6. बड़नगरिया
/ बड़नगरया / बडनगरे / बन्नगरे / नागरे
7. भादिया /
भादय्या / भादया / भादे / भादेकर
8. बोबाट /
भोभाट / भोभटकर / बोभाट / बोभाटकर
9. बोबड़ा /
बोबड्या / बोबड़े / बोबाड़े
10. बुहाड़िया
/ बुवाड्या / बोवाड्या / बुआड्या / भोहाड्या / बुवाडे / बोवाड़े / बोआड़े / भोहाडे
11. बरगाड़िया
/ बिरगड्या / बिरगड़े / बिरगाड़े / बिरखाड़े / वीरगाड़े / वीरखाड़े / वीरखड़े /
बिडगड़े / बिसेन
12. चोपड़िया
/ चोपड्या / चोपड़े / चोपड़ा / चोपाडे
13. चौधरी
14. चिकानिया
/ चिकनिया / चिकन्या / चिकान्या / चिकने / चिकाने / चनखार / चनखर / चकनार / चखनर
15. ढुंढारिया
/ डंडारे / डंढारे / डंडाले / दंडाले
16. डालू /
डाला / डहारे / डाले / डकारे
17. देवासिया
/ देवास्या / देवासे
18. देशमुख
19.
धारफोड़िया / धारपुरे / धारफोड़े / धारे
20. ढोटा /
ढोटया / धोटे / ढोटे
21. ढोंडी
22. ढोबारिया
/ ढोबारया / डोबारया / ढोबले / ढोबाले / ढोबारे / डोबले / डोबाले / डोबारे,
23. ढोलिया /
ढोल्या / ढोले
24. डिगरसिया
/ डिगरस्या / डिगरसे / डिगर्से / डिग्रसे / दीग्रसे
25. डोंगरदिया
/ डोंगरया / डोंगरदिए / डोंगरे / डोंगरदे / डोंगरकर / डोंगरदेव
26. दुखी /
दुर्वे / दु:खी / दुख्खे
27. फरकाड़िया
/ फरकाड्या / फरकाड़े / फरकासे / फरखासे / फरकसे
28. गाड़किया
/ गाखरे / गाकरे
29. गागरिया /
गागड़े / गाडगे / गागरे
/ आगरे
30. गाडरी /
गाडरया / गडरे / गधडे / गद्रे / गादड़े / गाडरे / काटोले / काटवले
31. घागरे
32. गिरहारिया
/ गिरहारया / गिरहारे / गिरारे / गिराले / गुसाई
33. गोंदिया
34. गोहितिया
/ गोहित्या / गोहिते / गोहते / गोयरे / गोहिता / गोहाटे / गोयते
35. गोरिया /
गोरया / गोरे
36. हजारिया /
हजारया / हजारे
37. हिंगवा /
हिंगवे
38. कालभोर /
कालभूत्या / कालभूत / कालभौर
39. करदातिया
/ करदात्या / करदाते / दाते
40. कड़वा /
कड़वे / कड़वेकर / कडू / कडूकर
41. कामड़ी
42. कसाई /
कासलीकर / कसारे / कास्लेकर / खसारे / केसलीकर
43. खौसी /
खौसे / खवसे / खवासे / कौशिक / खवशिक
44. खपरिया /
खपरया / खापरे / खपरे / खपरिए
45. खरगोसिया
/ खारफुसे / खुसखुसे / खरफसे
46. किरंजकर /
करंजकर
47. किनकर /
किनेकर / किंकर
48. कोड़िलिया
/ कोड़ल्या / कोड़ले / कोरडे
49. लबाड़ /
लबड़े
50. लावरी
51. लाडकिया /
लाडके
52. लोखंडिया
/ लोखंड्या / लोखंडे
53. माटिया /
माट्या / माटे
54.
मानमोड़िया / मानमोड्या / मानमोड़े / मानमुड़े
55. मुनी /
मुन्ने / मुने
56. नाडीतोड़
57. उकार /
ओंकार / ओमकार
58. पठाडिया /
पठाड्या / पठाडे / राखड़े
59. पड़ीयार /
परिहार / पराड़ / पड्याड़ / पड़िहाड़ / पड़ीमार / प्रतिहार / पराड़कर
60. पाठा /
पाठे / पाठेकर / पथे
61. पिंजारा /
पिंजारया / पिंजारे / पिंजरा / पिंजरे / पिंजड़े / पिंजरकर
62. रावत /
राऊत
63. रबड़िया /
रबड्या / रबडे / राबडे
64. रमधम /
रमधने
65. रोलकिया /
रोड़ल्या / रोडले
66. सरोदिया /
सरोदया / सरोदे / सरोदा
67. सवाई
68. शेरकिया /
शेरक्या / शेरके / छेरके
69. टावरी /
ठवरी / ठवरे / ठवले
70. ठुस्सी
71. टोपरिया /
टोपल्या / टोपले
72. उकड़लिया
/ उकड़ल्या / उकड़ले / उधड़े / उकंडे / उकड़ते / उकर्ले / उघड़े
कुछ अतिरिक्त
अपभ्रंश जिनका मूल गोत्र मालूम नहीं है - कुहिके, भुसारी, पेंधें, भोंगाड़े।
ये चार गोत्र भी पवारों के 72 गोत्रों में से कुछ गोत्रों के अपभ्रंश हैं, किंतु
यह किस गोत्र के अपभ्रंश हैं और इनका मूल गोत्र क्या है, यह ज्ञात नहीं है। यह शोध
का विषय है और इस पर शोध जारी है।
पवार
जाति केवल ऊपर दिए गए 72 गोत्रों तक सीमित है। इन 72 गोत्रों के अलावा पवार जाति में
कोई अन्य गोत्र नहीं है। पुराने ग्रंथों और लेखों में, उस समय पवारों के बारे में सीमित
जानकारी या जानकारी के अभाव के कारण, गोत्रों की सूची में कई त्रुटियां हुईं। परिणामस्वरूप,
ऐसे कई गोत्र भी सूचीबद्ध कर दिए गए जो वास्तव में पवार जाति से संबंधित नहीं हैं।
जैसा कि हमने अब
तक पवारों के गोत्रों की सूची में देखा है, समय और स्थान में बदलाव के चलते पवारों
के गोत्रों के कुछ अपभ्रंश भी हुए हैं। गोत्रों के अपभ्रंश होने के पीछे कई ऐतिहासिक,
भौगोलिक और भाषाई कारण रहे हैं। कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. मालवा से
सतपुड़ा क्षेत्र में माइग्रेशन :
- 16वीं से 18वीं शताब्दी के बीच मालवा के
पंवार राजपूत सतपुड़ा के बैतूल, मुलताई, और विदर्भ के क्षेत्रों में आकर बसे।
- इस प्रवास के दौरान गोत्रों के उच्चारण और
लिखने के तरीके में बदलाव हुए।
- बैतूल (मुलताई) से पांढुर्ना, सौसर, और
छिंदवाड़ा की ओर जाने वाले पंवारों के गोत्र में स्थानीय भाषाओं के प्रभाव से
अपभ्रंश हुआ।
2.
मराठी भाषा का प्रभाव :
- महाराष्ट्र के निकटवर्ती क्षेत्र
(पांढुर्ना, कारंजा, नागपुर) में मराठी भाषा का प्रभाव गोत्रों के नामों पर
पड़ा।
- उदाहरण:
- बारंगिया → बारंगा →
बारंगे
- चोपड़िया → चोपड़ा →
चोपड़े
- मराठी भाषा में उच्चारण और व्याकरण के कारण
हिंदी गोत्रों को मराठी शैली में लिखा और बोला जाने लगा।
3. अंग्रेजी में लिखने के कारण
परिवर्तन :
- गोत्रों को जब अंग्रेजी में लिखने की
प्रक्रिया शुरू हुई, तब उच्चारण और वर्तनी में बदलाव आया।
- उदाहरण:
- Chopde (चोपड़े) → Chopade
- उच्चारण में "चोपाडे"
जैसा स्वरूप प्रचलित हो गया।
- इसी प्रकार अन्य गोत्रों में भी अंग्रेजी
लिप्यंतरण के कारण बदलाव देखा गया।
4. भाषाई और व्याकरणिक प्रभाव :
- हिंदी और मराठी व्याकरण के भिन्न नियमों और
क्षेत्रीय शब्दों के उपयोग के कारण गोत्रों में परिवर्तन हुआ।
- उदाहरण:
- हिंदी के शब्दों में जहां "अ" का
प्रयोग होता था, मराठी में "ए" या "आ" का प्रयोग किया जाने
लगा।
- जैसे:
- चिकाणे → चिकाने
- पठाड़िया → पठाड़े
अन्य
कारण:
- स्थान-विशेष
के प्रभाव:
क्षेत्रीय उच्चारण के अनुसार गोत्रों के नामों
का स्थानीय रूपांतरण हुआ।
- जैसे, मुलताई में "डोंगरिया",
नागपुर में "डोंगरे",
और छिंदवाड़ा में "डोंगरड़े" या
"डोंगरदीवे"।
- सामाजिक
पहचान और स्वीकृति:
समुदायों ने स्थानीयता के साथ अपनी पहचान को
जोड़ने के लिए गोत्रों के नाम में छोटे-छोटे बदलाव स्वीकार किए।
निष्कर्ष
:
गोत्रों में
परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी, जो मुख्य रूप से माइग्रेशन, भाषाई प्रभाव, और
अंग्रेजी लिप्यंतरण से प्रभावित हुई। यह पंवार समाज के सामाजिक और सांस्कृतिक
अनुकूलन का प्रमाण है।
अध्ययन का महत्व:
पंवार समुदाय के गोत्रों के इस विकास और बदलाव को समझना न केवल
उनके इतिहास को संरक्षित करने का माध्यम है, बल्कि उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और
भाषाई प्रभावों का अध्ययन भी है। यह अध्ययन इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे
भाषाई और भौगोलिक परिवर्तन किसी भी समाज की पहचान को प्रभावित कर सकते हैं।
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शोधार्थी
& लेखक
राजेश बारंगे पंवार Rajeshbarange00@gmail.com ,
प्रणय चोपड़े pranaychopde123@gmail.com
राजेश बोबडे
माँ ताप्ती शोध संस्थान, मुलताई
maa.tapti.shodh.sansthan@gmail.com