" बुध्दिमान राजाभोज "
* दो शब्द *
यह लड़का तो बड़ा भाग्यवान हैं। यह एक महान राजा बनेगा। इस का नाम सारी दुनियॉ में फैलेगा, - ज्योतिषी ने बालक के मुख की ओर देखते हुए भविष्यवाणी की।
यह सुनकर पाठशाला के सभी विधार्थी और आचार्य अवाक रह गए। पांच साल के इस बालक के बारे में की गई इस भविष्यवाणी पर सरलता से विश्वास नहीं हो रहा था। फिर इस ज्योतिषी ने तो पहली बार ही इस बालक भी यह सोजकर आश्चर्य में था। उस बालक से रहा नहीं गया। उसने ज्योतिषी से पूछा -
आपने यह कैसे जाना कि मैं महान राजा बनूंगा ?
ज्योतिषी ने उत्तर दिया -
तुम्हारे सामने के टेढे-मेढ़े दो दांतों को देखकर मैने यह भविष्यवाणी की हैं।
आपने यह कैसे जाना कि मैं महान राजा बनूंगा ?
ज्योतिषी ने उत्तर दिया -
तुम्हारे सामने के टेढे-मेढ़े दो दांतों को देखकर मैने यह भविष्यवाणी की हैं।
इतना सुनते ही बालक उठा , बाहर के प्रागंण में पड़े एक पत्थर को उठाया और देखते -ही- देखते उसने अपने सामने के दोनों टेढे़-मेढ़े दांत तोड़ दिए। उसका मुंह लहू- लुहान हो गया । उसे ऐसा करते देख सभी आश्चर्य में पड़ गए। शिक्षक को डर लगा कि कहीं इस विषय में उस लड़के के चाचा सिन्धु राज से दण्ड न मिले । शिक्षक ने चिन्तित होकर उस बालक से पूछा -
तुमने अपने ये दांत तोड़ क्यों डाले ?
बालक ने उत्तर दिया -
गुरूदेव ! मैं अपने टेढ़े-मेढ़े दांतों के कारण या भाग्य के भरोसे राजा नहीं बनना चाहता । मैं अपनी शक्ति और पराक्रम से ही राजा बनूंगा। भाग्य से मिलने वाला राज्य मुझे नहीं चाहिए।
तुमने अपने ये दांत तोड़ क्यों डाले ?
बालक ने उत्तर दिया -
गुरूदेव ! मैं अपने टेढ़े-मेढ़े दांतों के कारण या भाग्य के भरोसे राजा नहीं बनना चाहता । मैं अपनी शक्ति और पराक्रम से ही राजा बनूंगा। भाग्य से मिलने वाला राज्य मुझे नहीं चाहिए।
अपनी शक्ति और योग्यता पर विश्वास करने वाला यह बालक भोज था, जो आगे चलकर राजाभोज के नाम से लोकप्रिय हुआ।
राजाभोज ने १०१० से १०५० ई० तक राज्य किया । मध्यप्रदेश की धार नगरी उनकी राजधानी थी। राजाभोज अपनी महानता और उदारता के कारण पूरे विश्व में प्रसिध्द हुए। वे एक बहुत बड़े ज्ञानी और विध्द्रान भी थे। उन्होंने संस्कृत के कई महान ग्रंथ लिखें।
कालिदास जैसे क ई कवि और विव्दान उनकी सभा में रहते थे। वे प्रज्ञा का बहुत ध्यान रखते थे और अत्यंत लोकप्रिय भी थे। विक्रमादित्य के बाद राजाभोज ही ऐसे शासक हुए हैं , जिनकी अनेक रोचक काहनियॉ उस समय के लोगों के बीच प्रचलित थी और आज भी प्रचलित हैं। इन कहानियों में राजाभोज की विव्दता , समझदारी , न्याय की भावना , उदारता और प्रजा के प्रति प्रेम की भावना देखने को मिलती हैं। ऐसी ही कुछ रोचक कथाएं यहां दी जा रही हैं।
कालिदास जैसे क ई कवि और विव्दान उनकी सभा में रहते थे। वे प्रज्ञा का बहुत ध्यान रखते थे और अत्यंत लोकप्रिय भी थे। विक्रमादित्य के बाद राजाभोज ही ऐसे शासक हुए हैं , जिनकी अनेक रोचक काहनियॉ उस समय के लोगों के बीच प्रचलित थी और आज भी प्रचलित हैं। इन कहानियों में राजाभोज की विव्दता , समझदारी , न्याय की भावना , उदारता और प्रजा के प्रति प्रेम की भावना देखने को मिलती हैं। ऐसी ही कुछ रोचक कथाएं यहां दी जा रही हैं।
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