महानदानियो मे दो चार नाम ही प्रमुखता से लिए जाते हैं जिनमें जगदेव पँवार का नाम भी आता है । बलि ने अपने राज्य का दान दिया, कर्ण रोज कई मण सौना दान करता था लेकिन कलियुग मे सिर्फ जगदेव के बारे मे ही यह कथा प्रचलित है उन्होंने ने अपने राज्य और शीश दोनों का दान किया था । इसलिए कलियुग मे जगदेव से बड़ा दानी किसे भी नहीं माना गया है ।
संवत् इग्यारह इकांणवै, चैततीज रविवार ।
सीस कंकाली भट्टनै, जगदेव दियो उतारि ।।
जगदेव महान परमार शासक उदयादित्य के छोटे पुत्र थे पिता इन्हें राज्य सौपना चाहते थे लेकिन बड़े भाई के रहते राजा बनने मे पाप लगता हैं यह सोचकर राज का त्याग कर गुलबर्गा (कर्नाटक ) चले गये थे । वहाँ के राजा विक्रमादित्य षष्ठ ने उन्हें बहुत सम्मान दिया और अपने भाई के समान मानता था ।
जगदेव महाराज का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण दान का प्रसंग शीशे दान का आता है । यह दान जगदेव ने गुजरात के शासक चालुक्य सिद्धराज जयसिंह के काल मे दिया था ।
महाराज विक्रमादित्य के नगरी में उनके वंशज श्री उपेन्द्र परमार ने परमार वंश की स्थापना ने ८०० ईशवी में स्थापना की थी I महाराज उपेन्द्र के बाद महाराज मुंज और चक्रवर्ती राजा भोज ने परमार/पंवार वंश की पराकाष्ठा चरम पर पंहुचा दी राजा भोज ने मध्यभारत के राजवंशो जैसे कलचुरि राजवंश- रतनपुर , गोंड, हैहय, से अच्छे सम्बन्ध रखने की कोशिश की और इन क्षेत्रो पर सीधा नियंत्रन नही रखा I उनकी मृत्यु के पश्चात परमार राजवंश पर जैसे काले बदल छा गए . इसके बाद उनके भतीजे राजा जयसिम्हा ( १०५५ -१०६० ईशवी ) के हार के बाद ऐसा लगा की मनो परमार वंश समाप्त हो गया. उनके भाई राजा उदयादित्य देव पंवार ( १०६० -१०८७ ईशवी ) ने मालवा को पून: संभल कर चालुक्य , होयसल, एंड कलचुरि राजाओ से मालवा की रक्षा कीI उन्होंने धार के पून;स्थापित कर सोने के सिक्के जारी किये. महराज उदयादित्य देव पंवार ने विदिशा जिले के उदैपुर और मांडू नामक स्थानो पर उदयेश्वर मंदिर की स्थापना की I राजा उदयादित्य देव पंवार की दो रनिया थी I पहली रानी सोलन्किनी देवी और दूसरी रानी वघेलिनी देवी थी I
रानी सोलन्किनी देवी से तीन पुत्र और दो पुत्रिया तथा रानी वघेलिनी देवी से एक पुत्र राजा रणछोड़ देव / रांधेल्ला हुए जिनके वंसज बिहार के डुमराओ , जगदीशपुर और बक्सर के राजा हुए I रानी सोलन्किनी के तीन पुत्र राजा लक्ष्मणदेव ( १०८७-१०९७ ईशवी ), राजा नर्वरमानदेव पंवार ( १०९७-११३४ ईशवी) और राजा जगदेव पंवार बाद में परमार वंश के गौरव को चरम पर ले गए. १०९७ ईश्वी में राजा नरवर्मन देव पंवार धार के राजा बने और उन्होंने अपने भाई राजा लक्ष्मण देव पंवार को विदर्भ का राजा बना दिया I
उस समय नगरधन/नन्दिवंधन विदर्भ की राजधानी थी, महराज लक्ष्मणदेव देव पंवार के समय नगरधन मालवा की दूसरी राजधानी के रूप में विकसित हुई I महाराज लक्ष्मण देव पंवार ने मध्यभारत में वास्तविक परमार वंश की नीव राखी थी I वर्तमान गोंदिया, बालाघाट, सिवनी, भंडारा, चंद्रपुर, वर्धा, छिंदवाड़ा, अमरावती, यवतमाळ, आदि क्षतरो तक परमार वंश का वास्तविक शाशन हो चूका था I
महाराज उदयदिय्या देव पंवार के तीसरे पुत्र युवराज जगदेव शुरू में गुजरात में सोलंकी राजा जयसिम्हा सिद्धराजा के साथ सोलंकी राजवंश के लिए अनेक युद्धः लड़े और विजय प्राप्त की Iओ वापस गुजर्Iत आये और उनके पिता राजा उदयादित्य ने उन्हें राजा बनाना चाहा किन्तु आंतरिक पारिवारिक उलझनों के कारन अपना राजयपाठ का त्याग कर भाई नरवर्मन देव को राजा बना दिया. राजा जगदेव विदर्भ राज्य की ओर चले गए.
मध्यभारत में उस समय के शक्तिशाली राजा कल्याणी चालुक्य राजा विक्रमादित्य VI ( १०७६-११२६ ईशवी) की सेनाप्रमुख बन गए और उन्हें पश्चिमी विदर्भ का चार्ज दिया गया I इस राजा जगदेव ने अपनी बुद्धि, पराक्रम और शक्ति से आंध्र, डोरसमुद्रा और अर्बुदा पर्वत के क्षेत्र को जीत लिया. इशके पश्चात उन्होंने कर्नाटक के राजा किंग कर्ण, आंध्र के राजा, चक्रदुर्गा( चित्रकोट , बस्तर वर्तमान छतीसगृह ) और डोरसमुद्रा के राजा होयसल के पराजित किया ी
११२६ में कल्याणी चालुक्य राजा विक्रमादित्य VI की मृत्यु के पश्चात स्वयं स्वंत्र राजा बनकर इस क्षेत्र में स्वंत्र पंवार राजवंश की स्थापना की I उन्होंने अपनी राजधानी गढ़ चाँदुर ( वर्तमानं राजुरा तालुका, जिला चंद्रपुर महाराष्ट्र) को बनाया I इनके पुरवा राजा लक्ष्मणदेव पंवार ने अपनी राजधानी नगरधन को बनायीं थीी
राजा जगदेव ने पंवार वंश का राज्यपथ गड़चांदुर में स्थानांतरित कर लिया. यह वह क्षेत्र था जन्हा से जगदेव पंवार आंध्र, बस्तर, कर्नाटक, विदर्भ और मध्यभारत के अन्य क्षेत्रो पर आसानी से नियंत्रण रखा सके. इनका मुख्य नियंत्रण वाले क्षेत्र बुलढाणा, अकोला, अमरावती, नागपुर, वर्धा, यवतमाळ ,चंद्रपुर, भंडारा, गोंदिया, और दक्सिनी वर्तमानं मध्यप्रदेश के जिले बालाघाट, सिवनी, छिंदवाड़ा,बैतूल से लेकर मालवा तक थे I
राजा जगदेव ने सात प्रकार के सोने के सिक्के चलाये थे जो नागपुर के केंद्रीय संग्रहालय और हैदराबाद के संग्रहाल में सुरक्षित है I
कुछ इतिहासकार राजा जगदेव पंवार के उत्तर भारत में बसने की बात कहते है जिन्हीने १०९४ ईशवी में अखनूर में बसने की बात कहते है. इसके बाद इस जगह का नाम वराट नगरी हो गया जिस जगह राजा जगदेव रुके थे उस जगह को अम्बरी कहा गया और इनकी अगली पीडियो को अम्बा रयान कहा गया. राजा जगदेव का क्षेत्र उत्तर, पश्चिम, मध्य और दक्षिण भारत तक फैला हुआ था,
इतिहासकारो में भले ही मतभेद हो पर राजा भोज के भतीजे महराज जगदेव को आज भी महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छतीसगृह, गुजरात, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचलप्रदेश आदि राज्यों में आज भी पूजा जाता है. इनका कार्यक्षेत्र पुरे भारत में फैला था और वे किसी एक जगह पर स्थिर नहीं थे ी
राजा जगदेव की मर्त्यु ११५१ ईशवी के आसपास माना जाता है I उनकी मृत्यु के पस्चात उनके वंशज राजा जगदेव II ने १२ शताब्दी के मध्य तक विदर्भ में शाशन किया किन्तु वे ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो सके. बाद में विदर्भ क्षेत्र के पूर्वी और उत्तरी क्षेत्र पर रतनपुर के गोंड राजाओ का कब्ज़ा हो गया. वाकाटक राजवंश के बाद पंवार राजवंश ही सबसे शाक्तिशाली हिन्दू राजवंश रहा पर इतिहासकारो ने विदर्भ के इस महान इतिहास के भुला दिया.
जय महाराज जगदेव पँवार
जय अग्निवंशीय क्षत्रिय पँवार/परमार राजवंश
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