2500 वर्ष पूर्व पवार पंवार (परमार) जाति की उत्पत्ति माउंटआबू (राजस्थान) में अग्निकुंड से हुई। तत्कालीन दानव दैत्यों से परेशान ऋषि-मुनियों ने महर्षि वशिष्ठ के मार्गदर्शन में एक अग्निकुंड तैयार किया और अग्नि प्रज्जवलित कर एक मानय निकाला। इसका नाम परमार रखा और इसे संतों की रक्षा का दायित्व सौंपा। इसके बाद दूसरा मानव पैदा किया और इसका नाम सौलंकी तथा तीसरे मानव को पैदा कर उसका नाम चालुक्य रखा। इस प्रकार ये सभी अग्निवंशीय व इनके वंशज परमार कहलाए। गोत्र का अभिप्राय उत्पत्ति से होता है और परमारों की उत्पत्ति वशिष्ठ द्वारा की गई है, इसीलिए इनका गौत्र वशिष्ठ है तथा कुलदेवी धार की गढ़कालिका है।
इस जाति ने जन्म से ही मानव समाज की रक्षा, समृद्धि एवं प्रतिष्ठा को अपना मूल कर्तव्य मानकर आदर्श भूमिका निभाई है। प्रगट होते ही पवार वीरों ने दानव-दैत्यों का संहार कर ऋषि-महर्षि तथा सर्वसाधारण जनमानस को सुरक्षा प्रदान की। मां दुर्गा (महामाया) को आराध्य तथा धार को अपनी कर्मभूमि बनाया। कुछ काल गुमनामी में बिताने के बाद ईसा पूर्व 761 में बौद्धधर्मियों से परेशान होकर महाबाहु नामक ऋषि ने आबू समीप अचलगढ़ व चंद्रावती राज्य की स्थापना की। ईसा पूर्व 400 वर्ष में महाप्रतापी नृपति, आदित्य पवार, विक्रमादित्य आदि ने इस जाति का गौरव चारो ओर फैलाया। इसी परमार वंश ने आगे ईसा 791 से 1310 तक राजा भोज, उपेन्द्र, बैरीसिंह, मंजुदेव, भोजदेव, जयसिंह, उदयादित्य, जगदेव, नर बर्मन ई, महाप्रतापी शूर एवं विद्वान नृपति गण को जन्म दिया। इन्होंने घार, उज्जैन, बागड़, जालौर, आयू तथा भिन्माल में राज्य कर मालवा को समृद्धशाली बनाया। परमार राजवंश का आधिपत मालवा से प्रारंभ होकर देश के कई हिस्सों में फैला था, जिसका प्रामाणिक इतिहास डॉ. गांगुली, डॉ. व्यंकटाचलम और कई विद्वान लेखकों, इतिहासकारों के शोध प्रबंध ग्रंथों में मिलता है। राजा भोज ने राज्य की राजधानी उज्जैन से हटाकर धार में स्थापित की थी। उस काल में धार का नाम धारा नगरी या राजाभोज का किला, भोजशाला इस बात के प्रमाण हैं।
समय बदलता गया राजपूताने और मालवा पर मुगल शासकों का आक्रमण होने लगा। कुछ राजा भोज के शासनकाल में तो कुछ इसके बाद परमारों का बिखराव होता चला गया। पवारों के पूर्वज मुगल सेना के आक्रमण और अत्याचार से परेशान हो गए थे मुगलों ने धार को तहस नहस कर दिया था। वे महिलाओं पर भारी अत्याचार करते थे। फिर भी जांबाज वीर योद्धा होने के कारण पवार काफिले के साथ मुगल सेना का मुकाबला करते हुए धार से
होशंगाबाद नर्मदा किनारे पहुंचे, यहां से अलग-अलग टुड़िया में नर्मदा में जनेऊ विसर्जित करके अलग अलग स्थानों क्रमशः बैतूल, छिंदवाड़ा। महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी के सहयोगी योद्धा परमार वंश के लोग आज मराठा पंवार कहलाते है। उस काल में उन विषम परिस्थितियों में जो जिस भूखंड पर बस गया। उसने उस क्षेत्र की बोली, पहनावा, खानपान अपना लिया। यहां तक कि उनके सरनेम भी बदल गए किंतु इनके रीति-रिवाजों एवं बोली में मालवा की संस्कृति के अंश आज भी विद्यमान है।
धार मालवा से आये ७२ गोत्र पवार / पंवार के गोत्र (कुल)
पवारो के यह गोत्र राजपूत सैनिक सरदारों के नाम /पदनाम / पदवी / संकेतित नाम है
यह वह ७२ गोत्र है जो धार से आये है कालन्तर में गोत्र (कुल ) कुछ बदल गए है
७२ कुली पवार /पंवार मुख्य रूप से मुलताई , पांढुर्ना हुए कारंजा घाडगे में मुख्य रूप निवासरत है
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