समाज के लिए कुछ कर गुजरने की भावना का मन में हिलोरे लेना ही सुखद होता है ,पर जब धरातल पर उतरने का समय आता है तब बहुत साहस और धैर्य की जरूरत होती है। सौभाग्य से श्री राजेश बारंगे इन दोनों ही बातों के धनी हैं।
श्री राजेश बारंगे सुखवाड़ा के बाद समाज के पहले व्यक्ति हैं*जिन्होंने हर क्षेत्र के समाज सदस्यों को सोशल मीडिया पर मंच सृजित कर उपलब्ध कराने का प्रशंसनीय कार्य किया।कोरोना काल में जिन युवाओं की टीम सभी क्षेत्र के समाज सदस्यों के सहयोग से बने बनाए मंदिर, भवन और छात्रावासों को अपनी निजी सम्पत्ति बताने का घृणित खेल खेल रहे थे तब भी श्री राजेश बारंगे हर क्षेत्र के समाज सदस्यों के लिए कार्य करके अपनी वृहद सोच का परिचय दे रहे थे।
समाज के लिए कार्य करने पर घर और बाहर दोनों जगह की गाली खानी पड़ती है। श्री राजेश बारंगे गालियाँ खा खाकर गाली प्रूफ भी बन चुक हैं। यह स्थिति उन्हें अपने अभियान में सफल बनाने का प्रमाण पत्र साबित हो सकती है।
आपके द्वारा माँ ताप्ती शोध संस्थान मुलताई की स्थापना करके अपने स्तर से समाज सेवा का बीड़ा उठाया गया है। भगवान् आपको यह सब करने हेतु सामर्थ्य और शक्ति प्रदान करें। समाज के लिए कुछ करने हेतु युवाओं का आगे आना शुभ संकेत है। "समाज सेवा" शब्द इतना दूषित कर दिया गया है कि ऐसे पावन कार्य करने के लिए उसका उपयोग न करना ही इन युवाओं की भावनाओं का सच्चा सम्मान है।
आपकी मिशन भावना से प्रेरित होकर और उसका सम्मान करते हुए श्री प्रणय चोपड़े और श्री राजेश माँ ताप्ती शोध संस्थान मुलताई बोबड़े भी आपके साथ सहर्ष सेवाएं देने हेतु तत्पर है। आप तीनों सदस्यों की जानकारी, किये जा रहे कार्य और माँ ताप्ती शोध संस्थान मुलताई का परिचय सुखवाड़ा के पाठकों के साथ साझा किया जा रहा है।
-सुखवाड़ा-9425392656
माँ ताप्ती शोध संस्थान, मुलताई
संस्थापकगण:
राजेश बारंगे पंवार (एग्रोकेमिकल अनुसंधान वैज्ञानिक)
पिता: श्रीमान देवराव पंवार (कलेक्ट्रेट कार्यालय, बैतूल)
माता: श्रीमती सुमन पंवार (एचएमटी, बैतूल)
मूलग्राम: चौथिया, मुलताई
प्रणय चोपड़े
पिता: प्रकाश चोपड़े
माता: ज्योति चोपड़े
मूलग्राम: करंजा (गाडगे), वर्धा, महाराष्ट्र
राजेश बोबडे
पिता: पंजू जी बोबडे
माता: मुन्नीबाई बोबडे
मूलग्राम: करजगांव जिला अमरावती, (महाराष्ट्र)
संस्थान का परिचय एवं कार्य:
माँ ताप्ती शोध संस्थान, मुलताई द्वारा स्थापित एक समर्पित संस्था है, जो विगत दो वर्षों से पवार (भोंयर/पंवार/पवार/परमार) क्षत्रिय समाज के इतिहास, भाषा, संस्कृति तथा वंश परंपरा पर केंद्रित अनुसंधान कार्य कर रही है।
संस्थान द्वारा भाट परंपरा की पोथियों के माध्यम से यह प्रमाणित किया गया है कि मालवा क्षेत्र में डोंगरदिए गोत्र के अंबुले और जैतवार उपगोत्रों में परस्पर वैवाहिक परंपरा प्रचलित रही है। साथ ही, यह तथ्य भी उजागर हुआ है कि ताप्ती घाटी एवं नर्मदा घाटी में चौधरी गोत्र का संबंध सिसोदिया वंश से रहा है, जो पवारों की क्षत्रिय पहचान को पुष्ट करता है।
संस्थान ने पवारी बोली की संरचना, शब्दकोश निर्माण तथा अन्य भाषाओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण शोध कार्य किया है। इस शोध में व्याकरण, उच्चारण, प्रयोग तथा मौखिक परंपराओं पर विशेष बल दिया गया है।
राजेश बारंगे पंवार:
- राजेश बारंगे पंवार विगत बारह वर्षों से डिजिटल माध्यमों द्वारा समाज को संगठित करने, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक जानकारी समाज के लोगों तक पहुँचाने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने पवारी बोली की संरचना, इतिहास और साहित्य पर निरंतर कार्य करते हुए कई डिजिटल संसाधनों का सृजन किया है।
- उन्होंने देश भर के विविध राजपूत वंशों के इतिहास और उत्पत्ति पर गहन अध्ययन किया है तथा इस विषय पर वर्षों तक अनुसंधान किया है।
- पवारी बोली पर विकिपीडिया पृष्ठ की स्थापना का श्रेय भी उन्हें जाता है।
- वे पवारी, मालवी, निमाड़ी, बुंदेली आदि क्षेत्रीय भाषाओं के तुलनात्मक भाषावैज्ञानिक अध्ययन में भी सक्रिय रूप से संलग्न हैं।
- उन्होंने पवार समाज की बहत्तर गोत्रों की सूची, उनके ऐतिहासिक सन्दर्भों और वंशावली को डिजिटल रूप में संरक्षित करने में सराहनीय योगदान दिया है।
- उन्होंने "क्षत्रिय पवार समाज इंडिया" जैसे डिजिटल मंचों के माध्यम से समाज को संगठित बनाए रखने का कार्य निरंतर किया है।
- वैवाहिक बायोडाटा समूहों में वे प्रशासक/सह-प्रशासक के रूप में कार्यरत हैं, तथा फेसबुक पृष्ठ, जहाँ 15,000 से अधिक सदस्य जुड़े हैं, के माध्यम से समाज को निरंतर सूचनाएँ प्रदान कर रहे हैं।
प्रणय चोपड़े:
- प्रणय चोपड़े ने इंटरनेट पर उपलब्ध डिजिटल पुस्तकों के माध्यम से पवार (क्षत्रिय संघ) की उत्पत्ति तथा मालवा से सतपुड़ा की ओर हुए स्थानांतरण के ऐतिहासिक एवं सामाजिक कारणों को प्रमाण सहित प्रस्तुत किया है।
- उन्होंने मालवा, महाराष्ट्र तथा अन्य क्षेत्रों के भाटों एवं विषय-विशेषज्ञों से प्रत्यक्ष जानकारी एकत्र की है, जो शोध कार्य में अत्यंत सहायक सिद्ध हुई है।
- उनकी दृष्टि ऐतिहासिक तथ्यों को समाज की परंपराओं एवं समय के साथ हुए परिवर्तनों से जोड़ने में अत्यंत प्रवीण है।
- उन्होंने भी पवार समाज की 72 गोत्रों की सूची, उनके ऐतिहासिक संदर्भ एवं वंशावली को डिजिटल रूप में सुरक्षित रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- साथ ही वे संस्थान में सह-संपादक के रूप में शोध-पत्रिका के निर्माण, सामाजिक समन्वय एवं क्षेत्रीय सर्वेक्षण में विशेष योगदान दे रहे हैं।
राजेश बोबडे:
- राजेश बोबडे ने पवार समाज की परंपराओं, इतिहास और पवारी बोली से संबंधित जानकारी को डिजिटल मंचों पर सुव्यवस्थित रूप में साझा कर समाज में जागरूकता उत्पन्न की है।
- उन्होंने बोली, परंपराएँ एवं ऐतिहासिक प्रसंगों को सरल भाषा में प्रस्तुत कर जनसामान्य के लिए सुलभ बनाया है।
- वे सामाजिक मीडिया के माध्यम से युवाओं में भाषा और संस्कृति के प्रति भावनात्मक जुड़ाव विकसित कर रहे हैं।
- उन्होंने पवारी बोली की कथाओं, गीतों और स्थानीय परंपराओं पर विशेष सामग्री संकलित कर प्रस्तुत की है।
प्रेरणा स्रोत:
इस सामाजिक शोध कार्य की प्रेरणा आदरणीय वल्लभ डोंगरे जी (सुखवाड़ा) से प्राप्त हुई। श्री ज्ञानेश्वर टेंभरे जी सहित अन्य विद्वानों का सतत मार्गदर्शन भी इस प्रयास में महत्त्वपूर्ण रहा है।
संस्थान द्वारा भविष्य में आयोजित की जाने वाली शोध गोष्ठियों, क्षेत्रीय सर्वेक्षणों एवं साहित्यिक बैठकों में समाज के वरिष्ठजनों, शिक्षकों तथा युवाओं की सक्रिय सहभागिता की आशा की जाती है।
पवारी शोध-पत्रिका का उद्देश्य:
इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पवार समाज की परंपराओं, बोली और साहित्य को संजोने एवं समृद्ध करने के लिए “पवारी शोध-पत्रिका” का शुभारंभ किया गया है। यह पत्रिका आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में कार्य करेगी, जो उन्हें उनके इतिहास, अस्तित्व एवं भाषा से सतत जोड़ती रहेगी।
इस पत्रिका में शोध लेखों के साथ-साथ लोक साहित्य, वंशावलियाँ, भाट परंपरा, सामाजिक प्रसंग तथा पवारी बोली के गीत-संग्रह भी सम्मिलित किए जाएंगे।
प्रकाशित शोध कार्यों की सूची (क्रमानुसार):
1. बारंगे, राजेश पंवार. (2017). पवार समुदाय में उपनाम: भोंयर पवार. प्राप्त: https://rajeshbarange.blogspot.com
2. सरोठ, राजकुमार. (प्रकाशन वर्ष नहीं). वंशावली: उमरानाला, छिंदवाड़ा।
3. बारंगे, राजेश पंवार. (2024). क्षत्रिय पवार (72 गोत्र): मालवा से सतपुड़ा की यात्रा. लैम्बर्ट पब्लिशिंग।
4. पवार, आर. बी., चोपड़े, पी., एवं माँ ताप्ती शोध संस्थान, मुलताई (बैतूल, म. प्र.). (2023). 36 गोत्र और 72 गोत्र पवार में ऐतिहासिक तथ्य. पवारी साहित्य सरिता, अंक 04।
5. पवार, आर. बी. (2024). पवार राजपूत: मालवा से मध्य भारत तक की ऐतिहासिक यात्रा. www.academia.edu
6. पवार, आर. बी. (2024a). मध्य भारत में पवार समुदाय के गोत्र (उपनाम) का अध्ययन।
7. पवार, आर. बी. (2024b). मध्य भारत में पवार समुदाय की जनसंख्या गतिशीलता: बैतूल, छिंदवाड़ा, पांढुर्णा और वर्धा जिलों की जनगणना-आधारित अध्ययन।
8. पवार, आर. बी. (2024c). समय के साथ यात्रा: मध्य भारत में पवार समुदाय की प्राचीन जड़ों का अन्वेषण।
9. पवार, आर. बी. (2024d). ऐतिहासिक प्रवासन एवं सामाजिक-सांस्कृतिक निरंतरता: मध्य भारत में पवार (भोंयर पवार) समुदाय का अध्ययन।
10. पवार, आर. बी. (2024e). बैना गंगा तथा वर्धा तटीय पवार समुदायों में वैवाहिक संबंधों के प्रमाण. पवारी साहित्य सरिता (2023)। www.academia.edu
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