२. देवर भाभी संवाद
भाभी सावन बरसे भादवो गरज,
मन मरो उडनो काव्य
ओ देवर जी तुम बन पारखी,
साजन ने ढूंढ लाओ
कोनदेशऽमगयातुमराभाई,
कौन बांट गया भूल
जाओ उन व लेख आओ,
तन म उठे है शूल ।।१।।
देवर म काहे को पंख लगाए
उड़ खा जाऊ दूर ।
दूर हय मेरा भैया, ओ भाभी
देऽकोईमन्तरपूर
भाभी आया सावन मेहंदी वाली,
गोरी हथेली लाएं ।
पेरा करना हाथ तुम्हारा,
असोऽ मंतर देहू।
अब देवर जी उड़ जाओ तुम
भैया के लिए तुम ढूंढ ||३||
रचयिता गोपीनाथ कालभोर, रोड़ा, जि.बैतुल.
0 Comment to "देवर भाभी संवाद (पवारी में)"
Post a Comment