बोली -भाषा के पुराने व अप्रचलित शब्द मरते जाते हैं और नए शब्द जगह भी बनाते जाते हैं। कुछ मृत या मरनासन्न शब्द पाठकों से साझा किए जा रहे हैं-
*लिलपी*-प्रथम बारिश के बाद अंकुराया या ऊगा चारा (हरा घास-फूस), गर्मी भर सूखा घास खाने के कारण ऊब चुके जानवर जिसे चरने हेतु ललचाते और चाव से चरते हैं।
*सौकास*- सुविधाजनक ढंग से, आराम से।
*ढेरा* - धन के आकार की लकड़ी से बनी तकली जैसी आकृति जिसे घुमाकर उसपर सन,अम्बाड़ी के लम्बे रेशों को रस्सी बुनने हेतु आटा जाता है, जिससे रस्सी तैयार की जाती है।
*पानुड़* -गन्ने के सूखे पत्ते।
*धाव*- कुएं से मोट द्वारा बैलों की सहायता से पानी निकालने हेतु बैलों के आगे-पीछे चलने हेतु बनाई गई विशेष ढलान युक्त जगह,राह।
*सुखवाड़ा* -* सुखद-मंगलमय कामना और समाचार।
*अगवानी*- आगे बढ़कर स्वागत- अभिनंदन करना।
*बारात झेलना* - गांव में बारात के आगमन पर अनौपचारिक रूप से अतिथियों के बैठने व पानी पिलाने की व्यवस्था करना।
*जनवासा* - विवाह के पूर्व बारातियों को रुकवाने की व्यवस्था , भोजनोपरान्त बाराती जहां विश्राम कर सकें।
*उतारा* - प्रथम बारिश के बाद खेत में ऊगा हुआ निंदा या खरपतवार।
*आपका "सुखवाड़ा" ई-दैनिक और मासिक भारत।*
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