Saturday, 20 June 2020

*भूले-बिसरे शब्द** 001


बोली -भाषा के पुराने व अप्रचलित शब्द मरते जाते हैं और नए शब्द जगह भी बनाते जाते हैं। कुछ मृत या मरनासन्न शब्द पाठकों से साझा किए जा रहे हैं-

*लिलपी*-प्रथम बारिश के बाद अंकुराया  या ऊगा चारा (हरा घास-फूस), गर्मी भर सूखा घास खाने के कारण ऊब चुके जानवर  जिसे चरने हेतु ललचाते और चाव से चरते हैं।
 *सौकास*- सुविधाजनक ढंग से, आराम से।
 *ढेरा* -  धन के आकार की लकड़ी से बनी तकली जैसी आकृति जिसे घुमाकर उसपर सन,अम्बाड़ी के लम्बे रेशों को रस्सी बुनने हेतु आटा जाता है, जिससे रस्सी तैयार की जाती है।  
 *पानुड़* -गन्ने के सूखे पत्ते। 
 *धाव*- कुएं से मोट द्वारा बैलों की सहायता से पानी निकालने हेतु बैलों के आगे-पीछे चलने हेतु बनाई गई विशेष ढलान युक्त जगह,राह।
 *सुखवाड़ा* -* सुखद-मंगलमय कामना और समाचार।
*अगवानी*- आगे बढ़कर स्वागत- अभिनंदन करना।
*बारात झेलना* - गांव में बारात के आगमन पर अनौपचारिक रूप से अतिथियों के बैठने व पानी पिलाने की व्यवस्था करना।
*जनवासा* - विवाह के पूर्व बारातियों को रुकवाने की व्यवस्था , भोजनोपरान्त बाराती जहां विश्राम कर सकें। 
*उतारा* - प्रथम बारिश के बाद खेत में ऊगा हुआ निंदा या खरपतवार।


 *आपका "सुखवाड़ा" ई-दैनिक और मासिक भारत।*

Share this

0 Comment to "*भूले-बिसरे शब्द** 001"

Post a Comment