Wednesday, 19 February 2025
Sunday, 16 February 2025
*पवारी-भोयरी भाषा -संस्कृति*
*पवारी-भोयरी भाषा -संस्कृति*
1. *लाम्हन* - रफाड़ में बैलों को चरने के लिए बाँधी गई लम्बी रस्सी
2. *भुड़का* - नदी- नाले में अस्थायी रूप से सिंचाई के लिए बनाया गया अस्थायी कुँआ। इस सम्बन्ध में एक कहावत भी है - जैसे जिनके माता पिता वैसे उनके लड़के।जैसे जहाँ के नदी नाले वैसे वहां के भुड़के।
3. *चीप -पाड़* - आम का पतला चपटा स्वरुप चीप जो सबसे पहले पकता है। सामान्य पके पेड़ से गिरे आम पाड़।
4. *गन्ना ग्यारस* -तुलसी विवाह गन्ना ग्यारस कहलाती है। इस सम्बन्ध में एक कहावत है - *आई अखाड़ी आया सन ,आई ग्यारस गया सन।*
5. सेवा भगत- महादेव यात्रा के दौरान सेवा भगत सम्बोधन का उपयोग किया जाता है।यात्रा के दौरान यदि किसी तरह की सेवा की जरुरत हो तो निःसंकोच कहिये इसका आशय यह है।
6. *जड़ -उल्हार* - बैलगाड़ी में क्रमशः आगे अधिक भार और पीछे अधिक भार को दर्शाने हेतु शब्द।
7. *बारात झेलना* - गाँव में बारात पहुँचने पर बारात का स्वागत कर उसे लाने की रस्म।
8. *लोंढा* - थोड़ी-सी बारिश आने पर नाले में लोंढा आ जाता है जो थोड़ी देर में ही उतर भी जाता है। नदी में पूर आती है।
9. *दापका* - धान, कोदो ,कुटकी आदि दरने (छिलके उतारने में) प्रयुक्त मिट्टी की हाथ चक्की।
10. *परोता* - मोट के चके का जोड़ीदार परोता होता है जिसपर समदूर चलती है और मोट की सूंड उसपर से आगे बढ़कर पानी उड़ेलती है।
11."एक हाथ लकड़ी दो हाथ छिल्पा"- अतिशयोक्तिपूर्ण कही गई बात।
12. "कुल्हाड़ी को एक वार सी झाड़ नी कटत"-प्रथम प्रयास में ही सफलता संभव नहीं।
13. *ठाना* -ककड़ी, कद्दू,डंगरा,सेम,गिलकी ,तोरई आदि के दो बीज लगाने की परंपरा है जिसे ठाना कहा जाता है।
14. *ठोमा* - मुट्ठी भर।
15. *उन्हारा -हिवारा* -गर्मी -ठंड की ऋतु
16 . *औकार* -दोनों हाथों में के घेरे में जितना आ जाए।
17. *फूल* -जमे गुड़ के ऊपर की हल्की व पतली सफ़ेद परत।
18. *झाँझ* - पवारी भजन के साथ बजायी जाने वाली बड़ी डिस्क।
19. *उक्किर* -चूहे का दर उक्किर कहलाता है। चूहे द्वारा मिट्टी उकेरने के कारण उक्किर शब्द बना।
20. *सुखवाड़ा* - हँसी ख़ुशी और स्वस्थ सुखी जीवन के संदेश के लिए शब्द।
*आपका "सुखवाड़ा" ई -दैनिक और मासिक भारत।*
Saturday, 4 January 2025
भोयरी / पवारी - राजेश बारंगे पंवार
भोयरी / पवारी
पवारी / भोयरी बैतूल, छिंदवाड़ा, वर्धा क्षेत्र में बोली जाने वाली मालवी की एक बोली के रूप में नामित है। कुछ विद्वान इसे रांगड़ी की बोली मानते हैं। कुछ स्रोतों में यह उल्लेख किया गया है कि भोयर लोगों द्वारा यह बोली बोले जाने के कारण इसका नाम भोयरी पड़ा।
पवारी / भोयरी मालवी की एक बोली है जो बैतूल, छिंदवाड़ा, और वर्धा के पंवारों/भोयरों द्वारा बोली जाती है। इसके कारण इस बोली का नाम भोयरी पड़ा। पंवार, बैतूल और छिंदवाड़ा में निवासरत थे। सदियों पहले, करीब 15वीं सदी में, धार मालवा से सतपुड़ा क्षेत्र में आ बसे।
बैटूल-छिंदवाड़ा के पंवार अग्निवंशी हैं, जो मूल रूप से उज्जैन परमार की शाखा से संबंधित हैं। इनकी उत्पत्ति आबू पर्वत से हुई है। बैतूल, छिंदवाड़ा, और वर्धा के पंवारों को पवार / भोयर / भोयर पवार आदि नामों से जाना जाता है।
संदर्भ:
- विकिपीडिया: भोयरी
- किताबें:
- Rajesh Barange Pawar
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