उत्तराखण्ड का परमार वंश या गढ़वाल का पंवार वंश
➤ गढ़वाल में 54 गढ़ थे। इन 54 गढ़ों पर खश ठकुरियों का अधिकार था। इन गढ़ों में सबसे प्रमुख गढ़ भानू प्रताप द्वारा बसाया गया चाँदपुर गढ़ी था। वर्तमान में सभी गढ़ों में बचा एक मात्र गढ़ चाँदपुर गढ़ी (चमोली) में स्थित है।
➤ गुजरात के राजा कनकपाल ने 888 ई. में गढ़वाल में पंवार वंश की नींव रखी। कनकपाल ने चाँदपुर गढ़ी को अपनी राजधानी बनायी। गढ़वाल पर कुल 60 पवार राजाओं ने शासन किया। पंवार वंश के 34 वें शासक राजा जगतपाल ऐसे प्रथम पंवार शासक हैं जिनकी जानकारी अभिलेख से मिलती है। पंवार वंश के वास्तविक संस्थापक 37 वे शासक अजयपाल को माना जाता है। अजयपाल ने सभी गढ़ों को जीतकर गढ़वाल की सीमा का निर्धारण किया।
➤ अजयपाल ने 1512 में अपनी राजधानी देवलगढ़ (पौढ़ी) स्थानांतरित की। 1517 में अजयपाल ने अलकनन्दा के तट पर स्थित श्रीपुर नामक स्थान की नगर के रूप में नींव रखके उसे अपनी राजधानी बनाया। चाँदपुरगढ़ी-देवलगढ़-श्रीनगर-टिहरी-प्रतापनगर-किर्तीनगर-नरेन्द्रनगर
➤इस वंश के शासक बलभद्रपाल ने सर्वप्रथम शाह की उपाधि प्राप्त की थी। बलभद्रपाल को शाह की उपाधि अकबर ने दी थी। बलभद्र के पश्चात मानशाह शासक बने। मानशाह ने प्रथम गढ़वाली ग्रन्थ मानोदय काव्य की रचना की थी। मानशाह ने कुमाऊँ राजा लक्ष्मी चंद को सात बार हराया था। मानशाह के बाद महीपतिशाह मुख्य शासक हुये। महीपतिशाह के प्रमुख सेनापति माधोसिंह भंडारी थे। माधोसिंह भंडारी को गर्भभंजक कहा जाता है।
➤महीपतिशाह की मृत्यु के पश्चात उनके 7 वर्षीय पुत्र पृथ्वीपति शाह को गढ़वाल का शासक घोषित किया गया। पृथ्वीपति शाह को शासक घोषित कर रानी कर्णावती उनकी संरक्षिता बनी। रानी कर्णावती के समय मुगल सेनापति नवाजद खाँ ने दून क्षेत्र पर आक्रमण किया । रानी कर्णावती ने मुगलों को पराजित कर उनकी सेना के नाक कान कटवा दिये। मुगल सेना के नाक कान काटने के कारण रानी कर्णावती नाककटी रानी कहलायी। मुगल सेना के नाक कान काटने कीक घटना का वर्णन निकोलस मनूची ने हिस्ट्री ऑफ मुगल में किया है। पृथ्वीपति शाह के समय मुगल शहजादा सुलेमान शिकोह (दारा शिकोह का पुत्र) ने गढ़वाल में शरण ली। पृथ्वीपति शाह के पुत्र मेदनीशाह ने सुलेमान शिकोह को जयसिंह को सौंप दिया।
➤ सुलेमान शिकोह को जयसिंह को सौंपने को कारण पृथ्वीपति शाह ने अपने पोते फत्तेपतिशाह को अपना उत्तराधिकारी बनाया। फत्तेपतिशाह के दरबार में नौरत्न मौजूद थे। फत्तेपतिशाह के शासन काल को साहित्य एंव संस्कृति का काल कहा जाता है। फत्तेपतिशाह के समय 1676 में गुरूराम राय श्रीनगर आये।
गुरूरामराय को फत्तेपतिशाह से दून क्षेत्र प्राप्त हुआ जहाँ डेरा डानने के कारण इस स्थान को डेरादून या देहरादून कहा गया।
गुरूरामराय को फत्तेपतिशाह से दून क्षेत्र प्राप्त हुआ जहाँ डेरा डानने के कारण इस स्थान को डेरादून या देहरादून कहा गया।
➤ गुरू रामराय ने धामवाला देहरादून में मुगलशैली पर झण्डा दरबार साहिब गुरूद्वारा बनवाया। गुरूरामराय ने उदासीन पंथ की स्थापना की थी। प्रदीप शाह के समय उनके कवि मेधाकर ने प्रदीपरामायण नामक ग्रन्थ की रचना की। गोरखाओं ने प्रद्युम्न शाह के समय 1791 में गढ़ावाल पर प्रथम आक्रमण किया जिसमें वे असफल रहे । 1804 में गोरखाओं और प्रद्युम्न शाह के मध्य खुड़बुड़ा का युद्ध हुआ जिसमें प्रद्युम्न शाह वीरगति को प्राप्त हो गये। 1804 से 1815 का समय गढ़वाल में गोरख्याड़ी काल रहा।
इसके बाद गढ़वाल नरेश ने अपनी राजधानी टिहरी गढ़वाल में स्थापित की और भारत में विलय के बाद टिहरी राज्य को उत्तर प्रदेश का एक जिला बना दिया गया।
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