Wednesday, 13 May 2020

अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय !!

अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय !!
उज्जैन और धार, पँवार(परमार) वंशियो की प्राचीन राजधानी थी। राजा महलकदेव पँवार मालवा के अंतिम शाशक थे जिनकी १३०५ मे अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति आईनुल मुल्क मुल्तानी ने हत्या कर दी और इसके बाद वंहा रह रहे लाखो पँवार भाइयो के लिए जीवन का संकट उत्पन्न हो गया था । यही से ये लोग देश के कोने-कोने में जाकर सुरक्षित क्षेत्रों में चले गए।
सम्राट भोज के भतीजे राजा लक्ष्मणदेव पँवार और राजा जगदेव पँवार ने विदर्भ के क्षेत्रों पर शाशन किया था और मालवा पर मुस्लिमो के आक्रमण के समय इस क्षेत्र पर पँवारो का शाशन था इसीलिए यह क्षेत्र पँवारो के लिए सबसे सुरक्षित क्षेत्र था और हमारे लाखो पँवार भाई नगरधन(नागपुर) के आसपास के क्षेत्रों में आकर बस गए जिन्हे भोयर पवार कहा गया।
कुछ पँवारो के जथ्थे पुना के आसपास जाकर बसे। कालांतर में छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वारा हिन्दुशाही मराठा वंश की स्थापना की जिससे वापस शक्तिशाली हिन्दू मराठा वंश का जन्म हुआ और इसके विस्तार में हमारे पँवार योद्धाओं ने पूरा सहयोग दिया जिससे हमें पुना और आसपास के कई क्षेत्रों में सरदार बनाकर रियासतें दी गई। सुपे, फाल्टन आदि प्रसिद्ध पवार रियासते हुयी और पँवारो का विस्तार कोकण, सतारा तक हो गया। यंहा निम्बालकर, जगदाले,विश्वासराव,दळवी, गुढेकर ,वाघ, बागवे, जगदाळे, धारराव, घोसाळकर, बने, धनावडे, सावंत ( पटेल ), राऊळ, पंडित, तळवटकर आदि पँवारो के उपनाम से प्रसिद्ध घराने हुए। ये सभी मराठा कुल में शामिल होकर उनके साथ हर युद्ध में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और शिवाजी महाराज के अखंड हिंदु राष्ट्र के स्वप्न को पूरा करने के लिए खूब लड़ाईया लड़ी।
विदर्भ के पँवार भाइयों ने भी कई युद्धों में मराठा राजाओ का साथ दिया जिससे भंडारा,गोंदिया और बालाघाट जिलों की जागीरदारी/पटेली प्राप्त हुयी और पँवार भाइयों को अब कृषि के लिए काफी जमीन मिल गयी और वे कुशल कृषक बने।
धीरे-धीरे मराठाओं की शक्तियाँ बढ़ती गयी और दिल्ली हिन्दुस्तान के अधिकांश क्षेत्रों पर मराठाओं का शाशन हो गया। धार और देवास की रियासतें वापस पँवार वंशियो को प्राप्त हुयी। इस प्रकार पँवार वंश मराठाओं का हिस्सा बन चूका था और सम्राट विक्रमादित्य और राजा भोज के वंशजो को अपने पुराने क्षेत्र प्राप्त हुए।
मालवा से विस्थापित पँवारो की कुछ शाखाये गुजरात, बिहार, उत्तराखंड,पंजाब और राजस्थान जाकर बस गए। राजस्थान में ८वी से १०वी शदी के आसपास कई पँवार(परमार) रियासते थी जिनके वंशज कालांतर में राजपूत पँवार कहलायें।
उज्जैनी परमार, गढ़वाली पँवार, मूली परमार, भोयर पवार, मराठा पवार, धार पवार, वैनगंगा पँवार आदि सभी शाखाएं अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय ही है और आज भी सभी अपने क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए निरंतर देश की एकता और अखंडता में पूरा सहयोग कर रहे है।
हर हर महादेव!! जय महाकाल!!_
जय माँ सच्चियाय गढ़कालिका भवानी!!
जय सम्राट विक्रमादित्य!! जय राजा भोज!!
जय क्षत्रपति शिवाजी महाराज!!
जय अग्निवंशीय पँवार(परमार) क्षत्रिय!!

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