बंगाल आसाम से सीखें -
पढ़ने का जज्बा -जुनून व साहित्यकार को सम्मान देना -
पढ़ने का जज्बा -जुनून व साहित्यकार को सम्मान देना -
पढ़ने का जैसा जज्बा और जुनून बंगाल में पाया जाता है वैसा भारत में विरला ही देखने को मिलता है। वहाँ किताबें मांगकर या चुराकर नहीं अपितु खरीदकर पढ़ने का शौक है।वहाँ पढ़ने ,गुनने व पढ़े से सीखने का प्रयास किया जाता है। वहां छोटे लेखक को सम्मान दिया जाता है.वहां जन्मदिन ,विवाह ,तीज त्योहार या विवाह वर्षगाँठ पर पुस्तकें भेंट करने का रिवाज है। वहाँ शब्द साधक ,साहित्यकार को समाज में जो सम्मान दिया जाता है वह अन्यत्र विरला ही पाया जाता है। किसी साहित्यकार की मृत्यु पर पूरा बंगाल शोक व्यक्त करने उमड़ पड़ता है। साहित्यकार के घर से लेकर श्मशान घाट तक लोग सड़क किनारे अंतिम दर्शन और विदाई देने के लिए कतारबद्ध खड़े रहते है। हिंदी क्षेत्र में ऐसा सम्मान बड़े बड़े साहित्यकार को भी नसीब नहीं हो पाता। प्रेमचंद की शव यात्रा में 6 और अमृता प्रीतम की शवयात्रा में 7 लोग शामिल हुए थे। साहित्यकार के प्रति समाज का सरोकार आसाम से भी सीखा जा सकता है जहाँ माता -पिता किसी कार्यक्रम में पधारे साहित्यकार के बारे में अपने बच्चों को जानकारी देते हुए देखे जा सकते है। हिंदी क्षेत्र में माता पिता को ही साहित्यकार के बारे में जानकारी नहीं होती ऐसे में अपने बच्चों को जानकारी देते हुए उन्हें देखे जाने का प्रश्न ही नहीं उठता।
सबक -हिंदी क्षेत्र में फेसबुक पोस्ट को पढ़ने व उसपर सार्थक प्रतिकिया व्यक्त करने का प्रतिशत भी नगण्य है। -सतपुड़ा संस्कृति संस्थान भोपाल
सबक -हिंदी क्षेत्र में फेसबुक पोस्ट को पढ़ने व उसपर सार्थक प्रतिकिया व्यक्त करने का प्रतिशत भी नगण्य है। -सतपुड़ा संस्कृति संस्थान भोपाल
0 Comment to "प्रेरणा -बंगाल आसाम से सीखें -"
Post a Comment