Friday, 1 May 2020
नजरिये
इंसान अपने नजरिये से ही ऊँचा उठता है
उसकी सोच एक ऐसे नजरिये को विकसित करती है
जिससे वो आगे बढ़ाता है
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विचार गतिशील व भिन्न होते है...
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इसका जीवंत उदाहरण है..
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सब्जी की टोकरी में से हर व्यक्ति सब्जी छाटता है
और मजे की बात है कि
बिक भी पूरी जाती है..!
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राजेश बारंगे पवार
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#राजेश_बारंगे_पवार
सुखवाड़ा अप्रैल 2017 अंक से
Saturday, 30 November 2019
अग्निवंशी पँवार
Sunday, 13 October 2019
परमारथ के काज में मोह ना आवत लाज* एल एल पवार छिन्दवाड़ा
*परमारथ के काज में मोह ना आवत लाज*
हिंदू मान्यता के अनुसार मनुष्य को 8400000 योनियों में जन्म लेने के पश्चात मानव तन प्राप्त होता है ।
इस सृष्टि पर कुछेक जीवधारी 24 घंटे अपनी उदर पूर्ति के लिए संघर्ष करते दिखाई देता है। कुछ सजीव 10 से 12 घंटे अपना उदर पोषण हेतु संघर्षशील रहते हैं। इस सृष्टि पर मानव ही एक ऐसा प्राणी है जोकि बहुत ही कम समय में उदर पोषण कर निवृत हो जाता है, बाकी का समय वह अपने घर परिवार की उन्नति के विषय में सोचता है उनकी उन्नति के लिए संघर्ष करता दिखाई देता है ,यह सच भी है कि मनुष्य को अपने परिजन, घर ,परिवार की अच्छाई के लिए कार्य करते रहना चाहिए।
*बाल्यावस्था को छोड़कर ,युवावस्था से प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था आते-आते मनुष्य इसी उधेड़बुन में लगा रहता है*
यह मनुष्य की स्वागत विशेषता को प्रदर्शित करता है।
मनुष्य को चाहिए कि अपना परलोक सुधारने के लिए जीवन में सदैव कुछ ना कुछ ऐसे कार्य करते रहना चाहिए जिससे परिजन के अलावा भी अन्य व्यक्ति यह माने और समझे कि अमुक व्यक्ति ने समाज में सामाजिकता के नाम पर उन्नति के नाम पर कुछ न कुछ कार्य कर रहा है जो कि लीक से हट कर है।
जब तक मनुष्य जीवित रहता है उसे उसके कार्यों के कारण यादों में वसा रहता है। *गरीबों एवं टैलेंटो के मसीहा के रूप में कार्य करना एक अलग बात होती है जो हमारे कार्यों को ऊपर वाले के खाते में कई गुना अधिक फलदाई सिद्ध होता है*। इससे हमारा अगला जन्म भी 8400000 योनियों से घटकर कुछ कम अच्छी योनियों में लेने के पश्चात पुनः मनुष्य जन्म प्राप्त होता है ।
*ऐसी हिंदू मान्यता में बातें कही गई है*
यहां या बात कहना बहुत जरूरी समझता हूं कि हम धार्मिक आयोजन में धर्म के नाम पर हिंदू देवी देवताओं के नाम पर जो कुछ भी करते हैं वह हमारी धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत दिखाई देती है । *ऐसा हिंदू धर्मावलंबी तो बहुतायत में दृष्टिगोचर होते हैं* समय निकालकर धर्म के नाम पर कुछ ना कुछ दान अवश्य ही करता है परंतु मेरी ऐसी मान्यता है कि इससे भी बड़ा पुण्य और धर्म का काम समाज सुधार के लिए गए कार्यों से ऊंचे होते हैं इसलिए *मनुष्यों की चाहिए कि वह समाज के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ ना कुछ ऐसे कार्य अवश्य करना चाहिए जो समाज सुधार या उद्धारक हो* ऐसे समाज सुधीजनों की समाज में एक अलग पहचान और प्रतिष्ठा कायम हो जाती है। और हम ऐसे व्यक्ति का जो समाज में गुमनाम की जिंदगी जी रहे हैं, उन्हें कुछ ऐसी सहायता प्रदान करते हैं जिससे उसका पूरा जीवन धन-धान्य से संपन्न हो जाता है। और समाज के दृष्टि पटल पर लाते हैं तो निश्चित रूप से यह धार्मिक कार्यों की तुलना में **कई गुना अधिक उपयोगी फलदाई सिद्ध होता है* *क्योंकि व्यक्ति दिल और अंतर्मन से उस समाज सुधारक, समाजसुधीजन व्यक्ति को दुआएं देता है जो फलित होती है और ऊपर वाले के खाते में सुनहरे अक्षरों में अंकित होते रहता है*। अतः मनुष्यों को चाहिए कि कुछ ना कुछ ऐसे कार्य करना चाहिए जिससे ऊपरवाले के *बही खाते में अमिट स्याही से नाम अंकित हो जाए*
एल एल पवार
छिन्दवाड़ा
कोजागिरी-डॉ ज्ञानेश्वर टेंभरे
*कोजागिरी*
अश्विन महिना की पुनवा
शरद रुतु को स्वागत मा
प्रकट भई से हासत चंद्रमा
बरसाय रही से अमृतधारा!
आकाश मा नाच रह्या सेत तारा
थंडी शितल से उडती हवा
प्रकट भई चांदनी जसी दीपमाला
बादर बिखराये रंगी-बेरंगी छटा!
गौरी बरसाये नई उमंग
शारदा बजाये मृदंग वीणा
वाग्देवी बहाये ज्ञान की गंगा
बरसाय रही से गायत्री प्रज्ञा!
----डॉ ज्ञानेश्वर टेंभरे
Sunday, 24 February 2019
पंवारी जीवन दर्शन RKP rahangdale
पंवारी जीवन दर्शन
आमि पंवार आजन जी।
हव जी हमी पोवार बि आजन जी
भूमसारे उठया बैल खाटया हेड़याँ,
गोबर कचरा ना आई माई न
सड़ा सारवण करिन जी
नीम पिसोन्डी अना परसा की
दातुन करया जी।
नित्य करम ल बि निपटया जी।
काहे का हामरा पुरखा लगत ,
साफ सफाई वाला पोवार होतीन जी।
पानतुना मा ल निंगरा हेड़ के,
चूल्हों मा काकी न पेटिस इष्तो।
एतरो माच राजा काका ,
साटा बाड़ी कन ल आयो
मोठ को काम उलसिर के
मुलकी जोड़ी ला खिचतो।
बघार्यो भात अना पीठ की रोटी पर,
हमरो संग मॉरिस हाथ।
मंघ भेली डाककन
पेवर दूध की चाय न देइस साथ।
असो मा च आयो हमरो कामदार पोट्या।
वोन बी डपटिस भुज्यो पापड़ संग
दूय बटकी पेज।
डोरा लक इशारो मा मोला बी कव्ह,
मोरो साटी अखि काई तरि त भेज।
ढोर चरावन जंगला जाबिन,
कव्ह न साहनो दादागो लक,
का मोला बि त धाड़
त देखाहु मि पहाड़ की
सेंडी पर लिजाय के
कसिक होसे ,
बाब्बाजी की दहाड़।
तब्ब मोला बी आभास भयो ,
गरिबी करावसे मेहमत हाड़तोड
पोट्या ल बि आस होती ,
वोला बि मिल्हे हाथ रोटी संग
सग्गो आम्बा की एक फोड़।
खाईन पिइन सबन ,
धरिन काम धंधा की बाट।
काइ कुई ल जिंदगी सरकsअ ,
चढ़ रही सेती सब उम्बरघाट।
अक्खा तीज मा करसा भर्या,
खाद की पेटी भरकेन ,
घुढ़ो ला बी कर दिया साफ।
बर बिहया मा घर मंगघ ,
एक झन बि जाहो तरि होहे माफ।
कर दिया मोहतुर भर दिया खार,
मंगघ रहिन सब सेजार पसार
इन्द्रासन लक बी भई बिनती बारंबार
मेघा बरसे चरो चरो ,अना
पानी न देइस भाउ साड़ साड़
यादि रहे दुबरो गिन ला ,
होतींन ऎन डाव दुय अषाड़।
सावन भादो लगत कमाया,
थर थर कापि सबचsअ की काया।
सतोड़ि वालो गिन न,
काई तरि त दम धरिन ,
पर गेंडवर गिन बाईsई
लगत पाव पड़ीन।
सकारी दुफारी खेतsअ हिन्डअ,
किसानी को होतो काका असो कीड़ा।
खेत मा पानी भर्योच रव्हअ ,
ओकोच मा रव्ह वू जुगत भिड़ा।
गणपति गौर दशरा अना
धूमधाम ल मनाया दिवारी
ऎन डाव फसल देख के ,
खुश होतींन शेतकारी अना बेपारी।
सेठ न पुढ़ हच ल पैसा मोज देइ होतीस
आई होतींन पेढ़ी दर पेढ़ी का
ओका मुंशी ना बेपारी।
नवधानी मा धान की जगली अना,
सेति जंगली जनावर भरमार।
मार देहो त जितो जी माच मर जाहो
असि धमकी चमकी देसे हामरी सरकार।
पराय देनsअ पर मारनो नोको,
असो सांगन की नोहोती कोण्ही ल दरकार।
पोवारी खोपड़ी जोजोsजो जोजोsजो,
अना धगाड़ी संग पटाखा की आगाज।
जंगली चौपाया बि काई गुनत रहेती
पुढ़ सेती अक्लवर हिममतबाज।
ईरा धर केन आई माई
काटत होतींन धान
बंद-शूर का मद्त ल पुंजना रच्या,
सजाय लिया सेजन खरयान।
पूष पुनवा तक रास उड़ावबीन,
तोरो दियो काइ कमी नाहाय भगवान।
जिन न बोई होतींन चना,
उनको हिंडनो बि भयो मना।
उजाड़ी रात मा मांकड़ चोर ,
हिन न उखाड़ीन तना।
बोइन जिन न बिन पानी का
ओलाहा गहुँ ,
रात बिरात म वोय,
चली बी जात होतीन
कहूँ का कहुँ।
सगड़ी सेकता बुजरुग बोलतअ
काया ला घसट रह्या सेजन आता
पर नाहजन काई कोढ़ी ।
साजरो नि लग आता बेटा मोला
जिंदगी बची रे मोरी थोड़ी,
आपरो बडडो दादा ल कव्हजो
मनसा असिक से मोरी का ,
ऎन डाव बच गयो त
नाहनो नाती ला बी
देखच लेहु आता चघता घोड़ी।
सररर भररर हवा चलsअ
होती नीरी थंडी ग़ार
कथड़ी ओढ़ के सायना कव्हत
परम् पूज्य तू पपू
बेटा नोकोच जादा बघार
काप रहिसेन सबका ऐन्जा हाड़ा
बाड़ी बोया होता त होती आवाजाही
पर आबsअ सूनो पड़ीसे बाड़ा
जम के पड़ रहिसे करंजझा
ऎन जिंदगी ला मातामाय को
पंडा भगत बी नही समझा ।
आखरी मदन पर
संजोरी की आड़ी खड़ी न
लगत बड़ाइस मान।
ढोला न कोठी मा दादा संग भर्या
हमी न बी धान
तोर पोपट बुरबार भइन त
अरसी लाखोरी खण्दया,
मुस्का डाक के
बूढ़गा बइल हिन ला
दावन मा खुट जवरअच फाँदया
नाहनसोली पुसटी अना
होती भारी मुतान
रह रह के वोय
झलक देत होतींन ,
का हमरो भरूसा नोको
रवजो रे किसान।
घर का अखि होतींन हीरा_मोती
सेजार का होतींन मामा_भाषया
इनला बी तबsअ ख़ूबच ठास्या ।
छेल्ला पर होतींन पानीदार
घर काअदन गोरsहा
नोहोतींन काई नांगर का
न बख्खर का
पर दावन साटी बजरंगा
दूध पिवता बाढ़ छूटी उनला
जसो की बांस कटंगा ।
खान को न पान को
नोहतो कोई मना
गहाय लिया संग मा गहुँ ना चना ।
जरा जरा सो ला संघऱ के
हमी बी रह्या बन्या ठन्या ।
फसल पानी ल बिक बाक के
बेपारी ल लेइन माल मत्ता
साल भर को मसाला संग
लेइन कपड़ा लत्ता।
हिसाब भयो त सेठजी न
नाक पर को तष्मा हेड़ के
हाथ जोड़ बिनती करिस ।
दादा संग मोठा दूय दादा
संग म होतींन दूय बड्डओ दादा
भईन सब बमचक
का सोनो चांदी ल लकदक
धोती कुर्ता ल चकाचक
ऎन सेठ ल हाम्रो सिन
बाबालो अखि का पड़ी!!
बेपारी को मारफत
सबका महुँ धाड़न इतच् ,
कहकेन सेठ न लगाय दिस
पैसा की झड़ी।
जवर ऊभो होतो उ मुंशी कव्ह
संग देंनsअ सब मोठा महाजन
पुढह आय रहिसे पत्ता फड़ी।
जीव जिंदगानी को पालनहारो ,
बारो महीना सतरा ठन काम।
यादि रव्हसे भजन भगवान को,
धरमधनी ल हरेक श्याम।
विध्न हर्ता को देवयोग ल
सुयश मिल्हे आफुन सबला।
निज निवास म सुखी रव्हन
यादि राखना काई तरि हामला।
राम राम कहके हमी बी
हात जोड़ सेजन इतsअ सबला।
Saturday, 25 August 2018
आपने यह कैसे जाना कि मैं महान राजा बनूंगा ?
ज्योतिषी ने उत्तर दिया -
तुम्हारे सामने के टेढे-मेढ़े दो दांतों को देखकर मैने यह भविष्यवाणी की हैं।
तुमने अपने ये दांत तोड़ क्यों डाले ?
बालक ने उत्तर दिया -
गुरूदेव ! मैं अपने टेढ़े-मेढ़े दांतों के कारण या भाग्य के भरोसे राजा नहीं बनना चाहता । मैं अपनी शक्ति और पराक्रम से ही राजा बनूंगा। भाग्य से मिलने वाला राज्य मुझे नहीं चाहिए।
कालिदास जैसे क ई कवि और विव्दान उनकी सभा में रहते थे। वे प्रज्ञा का बहुत ध्यान रखते थे और अत्यंत लोकप्रिय भी थे। विक्रमादित्य के बाद राजाभोज ही ऐसे शासक हुए हैं , जिनकी अनेक रोचक काहनियॉ उस समय के लोगों के बीच प्रचलित थी और आज भी प्रचलित हैं। इन कहानियों में राजाभोज की विव्दता , समझदारी , न्याय की भावना , उदारता और प्रजा के प्रति प्रेम की भावना देखने को मिलती हैं। ऐसी ही कुछ रोचक कथाएं यहां दी जा रही हैं।
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